पृष्ठ:हस्तलिखित हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त विवरण.pdf/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[ २८ ] सं०१८५८, वि० कृष्ण का मथुरा-गमन और | सिंहासन पतीसी दे०(छ-१४) कंस-बध, इसमें ४० छद है। दे० (छ-३०६) कृष्णदास-हृदयराम के पिता; सं० १६८० के कृष्णजी की लीला-(र० अशात) लि० का० पूर्व वर्तमान थे । दे० (उ-१७) सं० १७६७, वि० कृष्ण लीलानों का वर्णन । दे० | कृपणदास-विंध्याचल के निकट गंगा तट पर (ग-६९) गिरिजापुर निवासी, संभव है कि यह गाजी- कृष्णजीवन लच्छीराम-उप० लच्छीराम, दे० पुर के निवासी हाँ; सं० १८५२ के लगभग "लच्छीराम 1 (ग-६२) (छ-२८५) (क-७८) वर्तमान । कृष्णजीवन कल्याण-लच्छीराम के गुरु थे। भागवत मापा मारहवाँ स्कप दे० (ज-१५८ए) दे० (छ-२८५) भागवत माहात्म्य दे० ( ज-१५ बी) (च-६) कृपण जृ की पाती-हसराज परशी कृत; निक का० सं० १७८६, लि. का० सं० १९६६, वि० कृष्णदास (पयाहारी)-प्रटछाप में से हैं; श्रीकृष्ण जी के राधिका के लिये प्रेमपत्र । दे० अनंतदास गदाधर भट्ट, अग्रदास के गुरु: सं० १६०७ के लगभगवर्तमान। (ज-=१) (छ-१२८) (छ-४५ ए) जुगुलमान चरित्र दे० (ज-३०३ ) दे. कृष्ण जू को नखशिख-ग्वाल कवि कृत, नि० (छ-१२२) का० सं० १८७६ या सं० १८८४, लि० का० (अष्टछाप में अन्य कवि सूरदास, परमानंद- सं०१८७६ या सं० १८८४, वि० श्रीकृष्ण जी दास, कुंभकदास, चतुर्भुजदास, छीत स्वामी, के ननशिल अर्थात् सपूर्ण अंग का वर्णन । नंददास और गोविंददास थे।) दे० (स-8) कृष्णदेव-माथुर ब्राह्मण, इनके विषय में और कृष्ण-तरंगिणी-महाराज जयसिंह देव जू कृत; कुछ भी ज्ञात नहीं। नि० का० सं० १८७३, लि० का० सं० १६०८. राप्तपंचाध्यायी दे० (ज-१५६) वि० कृष्ण भगवान की व्रज लीला। दे० (क-१३६) | कृष्णदेव रुक्मिणी वैलि-पृथ्वीराज राठौर कृत; कृष्णदास-प्राह्मण, दतिया राज्य के निवासी लि० का० सं० १६६६, वि० कृष्ण रुक्मिणी सं १७३७ के लगभग वर्तमान । विवाह वर्णन 1 दे०(क-७) तौजा की कथा दे०(छ-६४ ए) कृष्णपचीसी-जन गूजर कृत; वि० दानलीला । महाकनमी की कथा दे० (छ-६४ वी) दे०(छ-२७०) एकादशी माहात्म्य दे० (छ-६४ सी) कृष्ण-प्रकाश-कुँवर मेदिनीमल्ल जू कृत; नि. ऋषि पञ्चमी को कथा दे० (छ-६४ डी) का० सं०१७-७, लि. का० सं० १९६२, ग्रंथ हरिभन्द कया दे० (छ-६४६) की अन्य प्रतिलिपियाँ सं०१७८ मोर १८२६ कृष्णदास-उज्जैन ( मालया ) के निवासी; प्राप्मण; की हैं, वि० हरिवंश पुराण का पद्यात्मक राजा भीमसिंह के आश्रित । भाषानुवाद । दे० (च-६६)