पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१०८

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( 46 ) ख्याति के अमिलापो हुए । इसीसे स्वास्थ्य तथा प्रसन्नता के सम जय जिस विषय पर चिच आया यह लिखा पार जहां से उन छोड़ दिया। लिखने पढ़ने के विषय में वारंवार इनका पढ़ता हु उत्साह घर के लोगों ने ऐसा भंग किया कि ये प्रायः इस अंश उत्साह-हीन से हो गए । निस्संदेह इनकी निरन्तर परिवारिक परत प्रता इन पिचा-यभय की घड़ी याधक हुई। तिस पर भी जाकु अब तक प्रकाशित हुआ है यह इनकी कुशाग्रबुद्धि पार कवित शक्ति का पूर्ण सूचक है। कविता में यं अपना उपनाम ग्रंमघ (अन) रखते हैं।