पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(६९) हेड मास्टर बना कर सीतापुर भेजे गए । यहा दो घर्ष काम करके फैजाबाद में सायंस मास्टर हो कर माप । एक वर्ष यहां काम करने पर फिर बनारस में सेकेंड मास्टर हो कर पाए। यहां ये ५ वर्ष रहे और उस काल में आपको संस्कृत अध्ययन का अच्छा अवसर मिला। फिर तो कई स्थानों में हेड मास्टर रद्द कर ये असि- स्टॅट इंस्पेक्टर हुए। इसके अनंतर सन् १८९५ में ये डिप्टीकले- कर नियत किए गए पर अब तक उसो पद पर हैं। हिंदी में प्रच्छी योग्यता होने के कारण और बहुत काल तक काशो में अच्छे अच्छे पंडितों का सहयास रहने से ये हिंदी की अच्छो सेवा कर सके हैं। इनका हिंदी का पहिला ग्रंथ मेघदूत का अनुयाद है और सन् १८८३ में प्रकाशित हुमा । इसके अनंतर इस प्रकार इन्होंने ग्रंथ प्रकाशित किए । (२) कुमारसम्भव १८८४ (३) रघुवंश (सर्ग ९ से १५ तक) १८८५ (४) रघुवंश (सर्ग १ से ८ तक) १८८६ (५) नागानंद १८८७ (६) रघुवंश (सम्पूर्ण) (७) ऋतुसंहार इसी बीच में शेक्सपियर के दो नाटकों का अनुवाद इन्होंने उर्दू में छापा। एक भूल भुलैया के नाम से और दूसरा दामे मुहम्बत के नाम से छपा । इसके अनंतर डिप्टी कलेक्टरी के जंजाल में पड़ने से ग्रंथ-रचना के काम में कई वर्ष तक ढील रहो। फिर इन्हों ने संस्कृत के कई नाटकों का अनुवाद छापा । इनमें उत्तररामचरित्र, मालविकाग्निमित्र, मृच्छकटिक आदि मुख्य हैं। हितोपदेश और प्रजाकर्तव्य कर्म ये दो ग्रंथ इन्होंने और लिखे । अाज कल गणित के प्राचीन ग्रंथों के छापने में आप लगे हुए हैं। १८९३ -