पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(३४) लाला बालमुकुंद गुप्त । ला पालमुकुंद गुप्त जी मप्रयाल वैश्य थे। इनका जन्म सन् १८६५०में पंजाब के रोहतक ला जिले के गुरयानी नामक ग्राम में हुआ था। पंजाब प्रांत में इस समय हिंदी की जो कुछ थोड़ी बहुत चरचा है सो आर्य समाज की बदौलत है परंतु जिस समय गुप्त जी की बाल्यावस्था थी उस समय तो वहां हिंदी का काला अक्षर भैस घरायर था । गुप्त जी को बाल्यावस्था में केवल उर्दू फारसी की शिक्षा दो गई थी। वयः प्राप्त होने पर आपने हिंदी का अध्ययन प्रपने शौक़ से किया था। इनको अच्छे अच्छे मज़मून लिखने का अभ्यास बालकपन से ही था । जब माप घर पर थे तभी लखनऊ के उर्दू अखवार, और अवध पंच, लाहौर के कोहनूर, मुरादाबाद के रहवर, पौर स्यालकोट के विकोरिया पेपर आदि अखबारों में लेख लिखा करते थे। इसलिये इनका नाम तभी से लेखकों में प्रसिद्ध था। अस्तु, चुनार के प्रसिद्ध रईस बाबू हनुमानप्रसाद ने जब चुनार से “अख़बारे चुनार" जारी किया तो इन्होंने लाला बालमुकुंद को बुलाकर उसका सम्मादक नियत किया । इन्होंने अखबारे चुनार को ऐसी योग्यता से चलाया कि उसे संयुक्त प्रांत के सब अखबारों में सिरे कर दिया परंतु कुछ दिनों पीछे गुप्त जी लाहौर को चले गए पौर वहां सप्ताह में तीन बार निकलने वाले "कोहनूर" के सम्पादक हुए । कुछ दिनों में आपने उस पत्र को दैनिक कर दिया ।