पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१८८

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(१२) कुछ दिनों के बाद गुमजो मंगवासी के समादक हुए 1 वर्ष सात वर्ष तक मापने पड़ो योग्यता से काम किया परंतु जब बंग- पासी के मालिकों में परस्पर झगया पैदा हुआ तो इन्होंने इस्तीस दे दिया पार घर को चले गए। घर पहुंचे देर न हुई थी कि भारतमित्र के मालिक ने इन्हें कलक युलालिया पार भारत मित्र का समादन-भार इनको दिया । तब से जीयन लीला के समाप्त दाने तक इन्होंने भारतमित्र का सम्पादन बड़ी योग्यता से किया। लाला पालमुकुंद गुप्त का परलोक पास सन् १९०७ भाद्र शुक्ला १६ युधपार को देहली में दुमा । गुप्तजी एक बड़े ही चतुर और युद्धिमान पुरुष धे। इनके लिये हुए पुस्तकाकार लेखों में तो केवल रत्नावली नाटिका, हरिदास, शियशम्भु का चिट्ठा, स्फुट कविता पार खिलौना आदि पुस्तक हैं। पापकी लेन-प्रणाली बड़ी ही उत्तम थी। माप अच्छे समालोचक थे। इनके सर लेख प्रभाव-जनक होते थे। इनकी भाषा बड़ी हो सरल और मनोहर होतो थी।