पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/१९४

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(३६) वाचू राधाकृष्णदास । PARयू राधारुप्यदास जी गोलोकयासो भारतेंदु बाबू हरि- वा, इचंद्र जी के फुफेरे भाई थे। बाबू हरिदचंद्र जी पिता बाबू गोपालचंद्र की दो वहिने थों, बड़ी यमुना योयो पार छोरी गंगा वीयो। वाव गधाहप्पदास गंगा बीबी के दूसरे पुत्र थे। इनके पिता का नाम बावू कल्याणदास था और बड़े भाई का नाम जीवनदास । वायू राधाकृष्णदास का जन्म श्रावण सुदी पूर्णिमा संवत् १९२२ में हुआ था। जब इनकी अवस्था केवल १० महीने की थी तब इनके पिता का परलोकयास हो गया । इसके थोड़े हो दिनों पीछे इनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। इससे बाबू हरिश्चंद्र जी ने अपनी फूफी को अपने घर बुला लिया। उन्होंके निरीक्षण में इनका लालन पालन हुमा और उन्होंके प्रबंध से इनकी शिक्षा प्रारंभ हुई। हिंदी और उर्दू की साधारण शिक्षा घर पर हो जाने के अनंतर ये स्कूल में बैठाए गए। परंतु ये बालकपन से हो रोगग्रस्त रहा करते थे इसीसे कभी नियमपूर्वक अध्ययन न कर सके। फिर भी बाबू साहब के सुप्रबंध से इन्होंने सत्रह वर्ष की अवस्था तक अँगरेजी में एंट्रेस क्लास तक पढ़ लिया और साथ ही साथ हिंदी, उर्दू, फार्सी पौर बंगलाभाषा में भी अच्छी योग्यता प्राप्त करली। पीछे से इन्होंने गुजराती भाषा का भी अभ्यास कर लिया था। इनका यह विद्याभ्यास उदरपोषण के लिये नहीं था वरन् मातृ-भाषा हिंदी को सेवा के लिये था । इसलिये इतना ही बहुत था।