पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२५

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(1) पालेकरी दी गई पार. ८००० मासिक येतन पर युलंदशहर को इनकी बदली हु। यहां हमे २० वर्ष काम किया और सन् १८८९० में पंशन लेकर ये फिर अपनी जन्मभूमि आगर में रह लगे। सन् १८७०९० प्रथम दिल्ली दरबार में इन्हें गवर्नमेंट राजा को पदयी प्रदान की। यद्यपि डिप्टी कलेकरी के कामों से इन्हें प्रयकारा बहुन का मिलता था तो भी हिंदी की और इनका पैसा प्रेम था कि जो समः पचता उसे घे उसीकी सेवा में लगाने। इन्होंने गवर्नमेंट की बहुनर पुस्तकों का अंगरेज़ी पार फ़ारसी से हिंदी में उल्या किया, जि. में से एक ताज़िरात हिंद का अनुवाद "दंद संग्रह" है। इन्हीं बुलंदशहर का एक इतिहास भी लिखा था जो कि हिंदी, उर्दू अँगरेज़ी तीनों भाषाओं में छपा है। हिंदी-जगत् में आपका नाम अमर करने घाले शकुंतला, मेघदूत गौर रघुवंश इन तीनों पुस्तके के भाषानुवाद हैं । इन पुस्तकों के अनुयाद में इन्होंने जो अपने पांडित्य का चमत्कार दिखलाया है वह किसी साहित्य-प्रेमी से छिपा नहीं है। भारतवर्ष तथा योरोप के विद्वानों ने भी आपको हिंदी का अच्छा कयि माना है। इनको लेखनी में यह खूबी है कि पद्य की कौन कहे गद्य में भी उर्दू फ़ारसी का एक शब्द नहीं माने पाया है, फिर भी एक एक पद सरस, सुपाट्य, और सरलता से भरा हुमा है । इनका देहांत ६९ वर्ष की अवस्था में ता० १४ जुलाई सन् १८९६ ई० को हुआ। .