पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/६

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अर्पण किया जाय। आज एक वर्ष के लगभग हुगा कि यह भाव मेरे हृदय में उत्पन्न हुआ। मैंने इंडियन प्रेस के स्वामी से प्रस्ताव किया कि वे एक ऐसा ग्रंथ छापने का उद्योग करें। उन्होंने कृपा कर इस प्रस्ताव को स्वीकार किया पर साथ ही शर्त यह लगा दी कि ग्रंथ का संपादन में हो करूं। मैं ने भी इस सिद्धांत के अनुसार कि "जो बोले सो घी को जाय" इस कार्य का भार अपने ऊपर लिया। यह स्थिर हो जाने पर एक इस ग्रंथ के पहिले भाग में किन किन महानु- भायों के चरित्र पार चित्र रहेंगे मैं इसकी सामग्री एकत्रित करने में तत्पर हुमा । इस कार्य में अनेक महानुभावों ने तो पत्र पाते ही आवश्यक सहायता से मुझे अनुगृहीत किया पर अधिकांश लोगों को कई येर पत्र लिख कर तकाज़ा करना पड़ा। इस स्थान पर उन कठि- नाइयों के वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है कि जो मुझे अधिकांश चित्रों पार चरित्रों के संग्रह करने में उठानी पड़ों। पाठक, इसी से इसका बहुत कुछ अनुमान कर सकते हैं कि अंतिम जीवन चरित मुझे १७ अक्टूबर १९०८ को और अंतिम फोटो २८ दिसंबर १९०८ को प्राप्त हुआ । अस्त, यद्यपि इस छोटी सी पुस्तक के लिखने में इतना समय लगगया पर मुझे संताप पार पानंद है कि यह अंत में तैयार हो गई पार अब शीघ्र ही हिंदी-प्रेमियों के हाथों में पहुंच कर यदि पार कुछ नहीं तो कम से कम लेखको पौर पाठकों में परस्पर सहानुभूति और प्रीति उत्पन्न करने में सहायक होगी। यदिइससे केवल इसो उद्देश्य की सिद्धि हो गई तो मैं अपने उद्योग को सफल समझूगा। इस रक्षमाला में चालीस जीवन-चरित्रों का संग्रह है जिनमें २० तो ऐसे महानुभाष के हैं जो परलोकगामी हो गए हैं और २० अभी वर्तमान हैं। इससे यह न समझना चाहिए कि पार इस योग्य हेही महीं जो इसमें स्थान पाते। इस रतमाला का यह पहिला