पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१०५

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मेल को देख नेत्र सुखी हो जाते हैं। यह एक अद्वितीय वस्तु है। जिस रँगरेज ने इंद्रधनुष के रंग को रँगा है वह कोई अद्वितीय कारीगर है।

रंगों के ज्ञान का महत्त्व भली भाँति हमारी समझ में नहीं आता। यदि रंग का ज्ञान न होता तो छाया, आकार, प्रकाश इत्यादि की सहायता से जुदे जुदे पदार्थों की पहचान कठिन हो जाती। तथापि जिस समय हम अपने आपसे यह प्रश्न करते हैं कि सौंदर्य क्या वस्तु है ? तो तुरंत ही सहज रीति से हमारे मन में भिन्न भिन्न रंगों के पक्षो, चिड़ियाँ, कीट, पतंग, पुष्प, रत्न, आकाश, इंद्रधनुष इत्यादि चमत्कारिक पदार्थों की कल्पना होती है

प्रकृति देवी ने हमें जो ज्ञानेंद्रियाँ दी हैं यह उसकी हम पर बड़ी कृपा है, बड़ा उपकार है। कान न होते और श्रवण की शक्ति न होती तो संसार का सुस्वर संगीत, प्रेमीजनों का मधुर वार्तालाप और वाद्यों की मनोहर ध्वनि हमारे लिये कुछ नहीं थी। हमारे नेत्रों की रचना में एक तिल भर फर्क हो जाता तो इस विशाल विश्व का वैभव, पदार्थों के सुंदर प्राकार, रंगों की चमक-दमक, प्रकृति की वन-शोभा, पर्वत, नदी, सरोवर इत्यादि के प्राकृतिक दृश्य देखने से हम वंचित रह जाते । रसनेंद्रिय के अभाव से सुंदर सुस्वादु खाद्य पदार्थ हमारे लिये नष्ट हो जाते-इस प्रकार प्रकृति के संपादित किए हुए संपूर्ण सुख-साधनों का उपभोग हमें कदाचित् न मिलता।