पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १०१ )


सौंदर्योपासक रस्किन ने लिखा है कि पर्वतों की ओर देखते ही मालूम होता है कि उन्हें ईश्वर ने केवल मनुष्य ही के लिये रचा है। पर्वत मनुष्यों की शिक्षा के विद्यालय, भक्ति के मंदिर, ज्ञान की पिपासा तृप्त करने के लिये ज्ञाननिझरों से पूर्ण, ध्यानस्थ होने के लिये प्रशांत और निर्जन मठ और ईश्वरा- राधन के लिये पवित्र देवालय हैं। इन प्रकांड देवालयों में चट्टानों के द्वार, मेघों के फर्श, ऊँचे गिरिशिखरों से गिरते हुए जलप्रपातों की गर्जना का संकीर्तन, बर्क के ढेरों से बनी हुई यज्ञवेदियाँ और स्थंडिल तथा अनंत तारकपुंजों से विशोभित नीले आकाश का शामियाना है।

है विश्वमंदिर विशाल सुरम्य सारा।
अत्यंत चित्तहर निर्मित ईश द्वारा ॥
जो लोग प्रेक्षक यहाँ पर आ गए हैं।
गंभीर विश्व लख विस्मित वे हुए हैं ।

-कुसुमांजलि
 

आकाश की सुंदरता मन को मुग्ध कर देती है। जिस समय मन उदास हो और उद्विग्न हो उस समय अपने मन को प्रसन्न करने के लिये सुंदर विशाल आकाश-मंडल की ओर देखो। यदि दोपहर का समय है तो आकाश के नील मंडप में इतस्ततः फैले हुए बादल उसे विचित्र बनाते हैं। प्रातःकाल और सायंकाल के समय के प्राकाश का दर्शन तो सर्वदा ही अवलोकनीय होता है। रात्रि का समय है तो प्राकाश के