पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१४९

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नहीं रहता। कवितारूपी सड़क के इधर उधर स्वच्छ पानी के नदी-नाले बहते हों; दोनों तरफ फलों फूलों से लदे हुए पेड़ हों; जगह जगह पर विश्राम करने योग्य स्थान बने हों; प्राकृतिक दृश्यों की नई नई झाँकियाँ आँखों को लुभाती हों। दुनिया में आज तक जितने अच्छे अच्छे कवि हुए हैं उनकी कविता ऐसी ही देखी गई है। अटपटे भाव और अटपटे शब्द प्रयोग करनेवाले कवियों की कभी कद्र नहीं हुई। यदि कभी किसी की कुछ हुई भी है तो थोड़े ही दिन तक। ऐसे कवि विस्मृति के अंधकार में ऐसे छिप गए हैं कि इस समय उनका कोई नाम तक नहीं जानता। एक मात्र सूखा शब्द-झंकार ही जिन कवियों की करामात है उन्हें चाहिए कि वे एकदम ही बोलना बंद कर दें*[१]। भाव चाहे कैसा ही ऊँचा क्यों न हो, पेचीदा न होना चाहिए। वह ऐसे शब्दों के द्वारा प्रकट किया जाना चाहिए जिनसे सब लोग परिचित हों। क्योंकि कविता की भाषा बोलचाल से जितनी ही अधिक दूर जा पड़ती है उतनी ही उसकी सादगी कम हो जाती है। बोलचाल से मतलब उस भाषा से है जिसे खास और ग्राम सब बोलते हैं, विद्वान् और अविद्वान् दोनों जिसे काम में लाते हैं


  1. * इस प्रकार के कवियों के लिये अँगरेजी के प्रसिद्ध लेखक कारलाइल (Carlyle) की शिक्षा ध्यान देने योग्य है—"Why sing your bits of thought, if you can contrive to speak them? By your thought, not by your mode of delivering it, you must live or die."