पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१७१

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खड़ा हुआ वह विजयी हो गया । आजकल लोग कहते हैं कि काम करो, काम करो। पर हमें तो ये बातें निरर्थक मालूम होती हैं। पहले काम करने का बल पैदा करो-अपने अंदर ही अंदर वृत्त की तरह बढ़ो। आजकल भारतवर्ष में परोपकार करने का बुखार फैल रहा है। जिसको १०५ डिग्री का यह बुखार चढ़ा वह आजकल के भारतवर्ष का ऋषि हो गया । अाजकल भारतवर्ष में अखबारों की टकसाल में गढ़े हुए वीर दर्जनों मिलते हैं। जहाँ किसी ने एक दो काम किए और आगे बढ़कर छाती दिखाई तहाँ हिंदुस्तान के सारे अखबारों ने "हीरो" और "महात्मा” की पुकार मचाई। बस एक नया वीर तैयार हो गया। ये तो पागलपन की लहरें हैं। अखबार लिखनेवाले मामूली सिक्के के मनुष्य होते हैं। उनकी स्तुति और निंदा पर क्यों मरे जाते हो ? अपने जीवन को अखबारों के छोटे छोटे पैराग्राफों के ऊपर क्यों लटका रहे हो ? क्या यह सच नहीं कि हमारे आजकल के वीरों की जाने अखबारों के लेखों में हैं ? जहाँ इन्होंने रंग बदला कि हमारे वीरों के रंग बदले, ओठ सूखे और वीरता की आशाएँ टूट गई।

प्यारे, अंदर के केंद्र की ओर अपनी चाल उलटो और इस दिखावटी और बनावटी जोवन की चंचलता में अपने आपको न खो दो। वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी हो और वीरता के काम नहीं तो धीरे धीरे अपने अंदर वोरता के परमा- णुओं को जमा करो।