पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/६४

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पाखी (बंगाल में मुरगी);छोटे जीवों में रामबरी (मेंढकी); व्यंजनों में रामरंगी ( एक प्रकार के मुँगाड़े ) तथा जहाँगीर ने मदिरा का नाम रामरंगी रखा था 'कि रामरंगिए मा नश्शाए दीगर दारद'; कपड़ों में रामनामी इत्यादि नाम सुनके कौन न मान लेगा कि जल स्थल, भूमि आकाश, पेड़ पत्ता, कपड़ा लत्ता, खान पान सबमें राम ही रम रहे हैं।

मनुष्यों में रामलाल, रामचरण, रामदयाल, रामदत्त, रामसेवक, रामनाथ, रामनारायन, रामदास, रामदीन, राम- प्रसाद, रामगुलाम, रामबकस, रामनेवाज; स्त्रियों में भी रामदेई, रामकिशोरी, रामपियारी, रामकुमारी इत्यादि कहाँ तक कहिए जिधर देखो उधर राम ही राम दिखाई देते हैं, जिधर सुनिए राम ही नाम सुन पड़ता है। व्यवहारों में देखिए लड़का पैदा होने पर रामजन्म के गीत; जनेऊ, ब्याह, मुंडन, छेदन में राम ही का चरित्र; आपस के शिष्टाचार में 'राम राम'; दुःख में 'हाय राम !'; आश्चर्य अथवा दया में 'अरे राम';महा प्रयोज- नीय पदार्थों में भी इसी नाम का मेल, लक्ष्मी ( रुपया पैसा) का नाम रमा; स्त्री का विशेषण रामा ( रामयति ) मदिरा का नाम रम (पीते ही नस नस में रम जानेवाली ), यही नहीं मरने पर भी 'राम राम सत्य है। उसके पीछे भी गयाजी में रामशिला पर श्राद्ध ! इस सर्वव्यापकता का क्या कारण है ? यही कि हम अपने देश को ब्रह्ममय समझते थे। कोई बात, कोई काम ऐसा न करते थे जिसमें सर्वव्यापी सर्व स्थान में