पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१०५

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१०५ हिंदी का शास्त्रीय विकास (१२) -यह संवृत हस्व श्रम स्वर है। इसके उधारण में जिला-स्थान ई की अपेक्षा कुछ अधिक नीचा तथा पोछे मध्य की ओर रहता है तथा होठ फैले तथा ढीले रहते हैं। उदा०-इमली, मिठाई, जाति। (१३), यह इ का जपित रूप है। दोनों में अंतर इतना है कि इ नाद और घोप ध्वनि है पर इ. जपित है। यह केवल व्रज, अवधी श्रादि घोलियों में मिलती है। उदा०-ग्र० श्रायत्इ., अव० गोलि.। (१४) ए--यह अर्धसंवृत दीर्घ अग्र स्वर है। इसका उच्चारण- स्थान प्रधान स्वर ए से कुछ नीचा है। उदा०--एक, अनेक, रहे। (१५) ए-यह अर्धसंवृत हस्व अग्न स्वर है। इसके उच्चारण में जिहान ए की अपेक्षा नीचा और मध्य की भोर रहता है। इसका भी व्यवहार विभाषाओं और घोलियों में ही होता है। उदा०-०-अवधेस के द्वारे सकार गई (कवितावली), श्रव० श्राहि फेर घेटवा । (१६) ए-नाद ए फा यह जपित रूप है और कोई भेद नहीं है। यह ध्वनि भी साहित्यिक हिंदी में नहीं है, केवल घोलियों में मिलती है। जैसे-अवधी-फहस । (१७) एँ-यह अर्धविवृत दीर्घ अग्र स्वर है। इसका स्थान प्रधान स्वर में से कुछ ऊँचा है। यों के समान ऍ भी व्रज की बोली की विशेषता है। उदा०-ऍसो, कैंसो। (१८) '--यह अर्धविवृत हस्व अग्र स्वर है। यह दीर्घ ए की अपेक्षा थोड़ा नोचा और भीतर की ओर मुका रहता है। उदा०-सुत गोद के भूपति लै निकसे में फे। हिंदी संध्यतर ऐ भी शीत्र बोलने से हस्व समानावर ' के समान सुन पड़ता है। (१६)'-यह अर्धविवृत ह्रस्वार्ध मिश्र स्वर है और हिंदी 'अ' से मिलता-जुलता है। इसके उच्चारण में जीम 'अ' को अपेक्षा थोड़ा और ऊपर उठ जाती है। जब यह ध्वनि फाफल से निकलती है तब काफल के ऊपर के गले और मुस में कोई निश्चित क्रिया नहीं होती; इससे इसे अनिश्चित ( Indeterminate ) अथवा उदासीन ( neutral) स्वर कहते हैं। इस पर कभी बल प्रयोग नहीं होता। अँगरेजी में इसका संकेत है। पंजावी भापा में यह ध्वनि बहुत शब्दों