पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/११०

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११० . हिंदी भापा उदा०-झाड़, सुलझाना, याँझ । (२२)ङ-घोप, अल्पप्राण, कंट्य, अनुनासिक स्पर्श-ध्वनि है। इसके उच्चारण में जिह्वामध्य कोमल तातु का स्पर्श करता है और कौश्रा सहित कोमल तालु कुछ नीचे झुक आता है जिससे कुछ हवा नासिका- .. विवर में पहुँचकर गूंज उत्पन्न कर देती है। इस अनुनासिक प्रकार स्पर्श-ध्वनि अनुनासिफ हो जाती है। शब्दों के बीच में कवर्ग के पहले उसुनाई पड़ता है। शब्दों के आदि या अंत में इसका व्यवहार नहीं होता। स्वर-सहित ङ का भी व्यवहार हिंदी में नहीं पाया जाता। उदा०-रंक, शंख, कंघा, भंगी। (२३) -घोप, अल्पमाण, तालव्य, अनुनासिक ध्वनि है। हिंदी में यह ध्वनि होती ही नहीं और जिन संस्कृत शब्दों में वह लिखी जाती है उनमें भी उसका उच्चारण न् के समान होता है जैसे-चञ्चल, श्रञ्चल श्रादि का उच्चारण हिंदी में चन्चल, अन्चल की भांति होता है। कहा जाता है कि ब्रज, अवधी आदि में अध्वनि पाई जाती है, पर खड़ी घोली के साहित्य में वह नहीं मिलती। (२४) ण-अल्पप्राण, घोप, मूर्धन्य अनुनासिक स्पर्श है। स्वर- सहित ण केवल तत्सम संस्कृत शब्दों में मिलता है और वह भी शब्दों के श्रादि में नहीं। , उदा०-गुण, मणि, परिणाम । - संस्कृतं शब्दों में भी पर-सवर्ण 'ण' का उच्चारण 'न' के समान ही होता है। जैसे-सं० पंडित, कंठश्रादिपन्डित, कन्ठ श्रादि के ससान उच्चरित होते हैं। अर्द्ध स्वरों के पहले अवश्य हलंत ए ध्वनि सुन पड़ती है, जैसे- करव, गण्य, पुण्य श्रादि । इनके अतिरिक्त जिन हिंदी शब्दों में यह ध्वनि बताई जाती है उनमें 'न' की ही ध्वनि सुन पड़ती है, जैसे-कंडा, गंडा, घंटा, ठंढा। (२५) न-अल्पप्राण, घोप, धर्त्य, अनुनासिक स्पर्श है। इसके उच्चारण में ऊपर के मसूढे के जिह्वानीक का स्पर्श होता है। अतः इसे दत्य मानना उचित नहीं। उदा०-नमक, कनक, कान, यंदर। (२६) न्ह-महाप्राण, घोष, वर्त्य, अनुनासिक व्यंजन है। पहले इसे विद्वान् संयुक्त व्यंजन मानते थे पर श्रव कुछ आधुनिक विद्वान इसे ___घ, ध, भ आदि की तरह मूल महापाण ध्वनि मानते हैं। . उदा०-उन्हे, कन्हैया, जुन्हया, नन्हा। .. . ।