पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/११७

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हिंदी का शास्त्रीय विकास ११७ वैदिक में (१), के स्थान में a अ, के स्थान में इ; (२) दीर्घ , के स्थान में श्रा; (३) संध्यक्षर ei, oi के स्थान में ए, परिवर्तन eu, ou के स्थान में ० श्रो; और az, ez, oz के स्थान में भी ,6; (४) के स्थान में ईर, ऊर; 1 के स्थान में rऋ; (५) ai, i, ii के स्थान में ai ऐ u u, ou के स्थान में auी ; श्राता है। इसके अतिरिक्त जव ऋ के पीछे अनुनासिक आता है, ऋ का ऋ हो जाता है। अनेक कंव्य वर्ण तालव्य हो गए हैं। भारोपीय काल का तालव्य स्पर्श वैदिक में सोम श के रूप में देख पड़ता है। अर्जनसात मूर्धन्य व्यंजन और एक मूर्धन्य पये पाठ ध्वनियाँ वैदिक में नई संपत्ति है। आजकल की भापाशास्त्रीय दृष्टि से ५२ वैदिक ध्वनियों का वर्गी- करण इस प्रकार किया जा सकता है- स्वर- (तेरह स्वर) पश्च मध्य अथवा मिश्र श्रम सवृत (उच्च) अर्ध-सवृत (उच्च-मध्य ) अर्थ-विवृत ( नीच-मध्य) विवृत ( नीच) आ, अ सयुक्त स्वर श्राक्षरिक