पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१३०

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हिंदी भापा कहि सनिकादिक इंद्र सम । (२-११०) बलि लग्गौ जुध इंद्र सम। (२-२१८) यह 'सम' संस्कृत के सह का पर्याय है और इसी से आगे चलकर 'सन' बना है जिसका प्रयोग अवधी में प्रायः मिलता है। श्रतएव बहुतों का मत है कि सम से सन तथा सन से सौ. सेशीर अंत में 'से' हो गया है। पर रासो में से', 'सम', 'हुँतो' श्रादि रूप का एक साथ मिलना यह सूचित करता है कि ये सब स्वतंत्र है; कोई किसी से निकला नहीं है। (४) संबंध-कारक-इसकी विभक्ति 'का' है। घाक्य में जिस शब्द के साथ संबंध-कारक का संबंध होता है, उसे भेद्य कहते हैं। और भेद्य के संबंध से संबंध कारक को भेदक कहते हैं। जैसे-'राजा का घोड़ा' में 'राजा का भेदक और 'घोड़ा' भेद्य है। हिंदी में भेद्य इस .विभक्ति का अनुशासन करता है और उसी के लिंग तथा वचन के अनु- सार इसके भी लिंग-वचन होते हैं। श्रीर सय विमक्तियाँ तो दोनों लिंगों तथा दोनों वचनों में एक सी रहती हैं, केवल संबंध-कारक की विमक्ति पुल्लिंग एकवचन में 'का', स्त्रीलिंग एकवचन में 'की', और स्त्रीलिंग तथा पुल्लिंग दोनों के बहुवचन में तथा पुल्लिंग भेद्य के फारक- चिह्न-ग्राही रूप के पूर्व प्रयुज्यमान भेदक की 'के' होती है। इसका कारण यह है कि भेदक एक प्रकार से विशेपण होता है और विशेपण फा विशेष्यनिन होना स्वाभाविक ही है। इसी विशेषता को ध्यान में रख- कर इसकी व्युत्पत्ति का विवेचन करना उचित होगा। इस विभक्ति की व्युत्पत्ति के संबंध में भी विद्वानों में कई मत है, जो नीचे दिए जाते हैं। . (क) संस्कृत में संज्ञाओं में इक, ईन, ईय प्रत्यय लगने से तरसं. बंधी विशेपण बनते हैं। जैसे, काय से कायिक, कुल से फुलीन, भारत से भारतीय। 'इक' से हिंदी में 'का', 'ईन' से गुजराती में 'नो' और 'ईय' से सिंधी में 'जो' तथा मराठी में 'चा' होता है। (ख)प्रायः इसी तत्संबंधी अर्थ में संस्कृत में एक प्रत्यय "क" पाता है। जैसे-मद्रक-मद् देश का, रोमक-रोम देश का। प्राचीन हिंदी में 'का' के स्थान में 'क' पाया जाता है, जिससे यह जान पड़ता है कि हिंदी का 'का' संस्कृत के 'क' प्रत्यय से निकला है। (ग) प्राकृत में 'इदं ( संबंध ) अर्थ में करी ' 'केरिन' 'केरक' 'केर' श्रादि प्रत्यय बातें हैं, जो विशेपण के समान प्रयुक्त होते हैं और लिंग में विशेष्य के अनुसार बदलते हैं। जैसे-फस्त केरकं एदं पवहएं (किसकी यह पहल है)। इन्हीं प्रत्ययों से पृथ्वीराज रासो की प्राचीन हिंदी के केरा, केरो आदि प्रत्यय निकले हैं जिनसे हिंदी के 'का, के, की'