पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१३५

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हिदी का शास्त्रीय विकास १३३ स्थर हो; जैसे चलति का चलइ होता है। इस शब्द के स्वरों और व्यंजनों को अलग करने से ऐसा रूप होता है--+++++ इ। अब त् अक्षर श्र और इ के बीच में पाया है, इसलिये उसका लोप हो गया है। एक दूसरा उदाहरण लीजिए-कामरस तत्त (-कामस्य तत्व)। इसमें तत्त के प्रथम त का लोप नहीं हुश्रा, यद्यपि कामस्स का अंतिम स प्रकारांत है और 'त' स्वयं भी प्रकारांत है। यहाँ इसका लोप इसलिये नहीं हुआ कि यह शब्द के श्रारंभ में पाया है। अतएव यह स्पष्ट हुश्रा कि 'क' या 'त' का लोप तभी होता है, जब वह शब्द के बीच में आता है। शब्द के श्रारंभ में उसका लोप नहीं होता। श्रय हम किन, कर, करौ और तनी इन तीन प्राचीन शब्दों को लेते हैं जो संबंध कारक के प्रत्यय बन गए हैं। हिंदी 'घोड़े का' 'घोड़हि कथन' से बना है। यहाँ इस कमश्र के क का लोप नहीं हुश्रा और वह अाधुनिक 'का' रूप में 'क' सहित वर्तमान है। अतएव यह 'का' का 'क' एक स्वतंत्र शब्द का प्रारंभिक अक्षर है, जो घोड़े के साथ मिलकर एक नहीं हो गया है। इसलिये यह कारक चिह्न के रूप में वर्तमान है और व्याक- रण के नियमानुसार प्रत्यय नहीं बन गया है। अब बँगला का 'घोड़ार' लीजिए जिसका अपभ्रंश रूप 'घोड़न-कर' है। इसमें 'कर' का केवल 'नर' रह गया है। यहाँ आरंभिक 'क' का लोप हो गया है। यह 'क' मध्यस्थ होकर लुप्त हुआ है; इसलिये यह स्वतंत्र न रहकर घोड़ा शब्द में लीन हो गया है। यहाँ यह कारकचिह्न न रहकर प्रत्यय बन गया है। बहिरंग भाषाओं में इस प्रकार के और भी उदाहरण मिलते हैं; पर विस्तार करने की आवश्यकता नहीं है। जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, बहिरंग भाषाएँ संयोगावस्था में हैं; अतः उनके कारकों के सूचक सहायक शब्द उनके अंग बनकर उनसे संयुक्त हो गए हैं; और अंतरंग भाषाओं में, उनकी वियोगावस्था में रहने के कारण, चे वियुक्त रहे हैं। इस अवस्था में हिंदी के संशा-कारकों की विभक्तियों को शब्दों से अलग रखना उनके इतिहास से सर्वथा अनुमोदित होता है। इस संबंध में जानने की दूसरी बात यह है कि अंतरंग भापाओं में कारक चिह्न या विभक्तिलगने के पूर्व शब्दों में वचन आदि के कारण विकार हो जाता है। पर बहिरंग भाषाओं में प्रत्यय लग जाने पर इन्हीं कारणों से विकार नहीं होता। यहाँ एक अपनी स्वतंत्र स्थिति बनाए रखता है, और दूसरा अपना अस्तित्व सर्वथा खो देता है। यह उपर्युक्त विचार हमने ग्रियर्सन प्रभृति विद्वानों के मतानुसार किया है। जिस प्रकार अंतरंग-बहिरंग भेद के प्रयोजक अन्य कारणों