पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१३७

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हिंदी का शास्त्रीय विकास , १३५" पश्चिमी हिंदी से बढ़कर कुछ संयोगावस्थापन्न रूपावली नहीं मिलती; श्रतः उसके कारण दोनों में भेद मानना प्रयुक्त है। . • श्रव हम हिंदी के सर्वनामों की व्युत्पत्ति पर विचार करेंगे। - इनमें विशेषता यह है कि इनमें से कुछ तो सर्वनाम + संयोगावस्था में हैं और कुछ वियोगावस्था में । एक एक सर्वनाम को लेकर हम इस संबंध में विवेचन करेंगे। (१)मैं, हम-संस्कृत के अस्मद् शब्द का करण कारक का रूप संस्कृत में 'मया', प्राकृत में 'मह' श्रीर अपभ्रंश में 'म' होता है, जिससे हिंदी का 'मैं' शब्द बना है। संस्कृत के अस्मद्-शब्द के कर्ता कारक का रूप संस्कृत में अहं, प्राकृत में 'अम्हि श्रार अंपभ्रंश में 'हउँ' होता है, जिससे हिंदी का 'हो' शब्द बना है। श्रतएवं यह स्पष्ट है कि कविता का है। (मैं) प्रथमा का परंपरागत रूप है और आधुनिक 'मैं' तृतीया से बना है। 'बहुवचन में संस्कृत के 'वयं' का रूप लुप्त हो गया है, यद्यपि प्राकृत में घयं का चयं और पाली में मयं रूप मिलता है। पर अपनश में यह रूप नहीं देख पड़ता। बहुवचन में प्राकृत में, अम्हें, श्रम्हो और अपभ्रश में श्रम्हइँअम्हे. श्रादि रूप मिलते हैं। श्र का लोप होकर और म-ह में विपर्यय होकर 'हम' रूप बन गया है। मार्क- डेय ने अपने प्राकृतसर्वस्व के १७ वे पाद के ४८ वे सूत्र में अस्मद् के स्थान में 'हमु' श्रादेश का उल्लेख किया है। परंतु उन्होंने यह रूप 'एकवचन में स्वीकार किया है। अपभ्रंश के लिये इस प्रकार का वचन-व्यत्यय कोई नई बात नहीं। कारकग्राही या चिकारी रूपों में हिंदी में दो प्रकार के रूप मिलते हैं। एक में हिंदी की विभक्ति लगती है और दूसरे में नहीं लगती। जैसे--कर्म कारक में मुझे और मुझको, हमें और हमको दोनों रूप होते हैं, पर अन्य कारकों में 'मुझ' के साथ विभक्ति अवश्य लगती है। मुभ और मुझे प्राकृत और अपभ्रंश दोनों में मिलते हैं, जिनसे हिंदी का मुझ रूप बना है। संबंध कारक में कृतः के केरी, करी रूपों के प्रारंभिक क के लुप्त हो जाने से रोया रा अंश बच रहा है, जो कई भापात्रों में अब तक पष्ठी विभक्ति का काम देता है। इस 'रा' प्रत्यय के 'मे' में लगाने से 'मेरा' रूप बनता है और इसके अनुकरण पर यहुवचन का रूप बनता है। सारांश यह है कि अस्मद् से प्राकृत तथा अपभ्रंश द्वारा होते हुए ये सय रूप बने हैं। परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि कारकग्राही रूपों में मुझ रूप स्वयं कारक-प्रत्यय सहित है; पर हिंदी में इस बात को भूलकर उसमें पुनः विभक्तियां लगाई गई हैं।