पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१३८

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१३६ ., हिंदी भाषा (२) तू, तुम, आप- इनमें से तू और तुम रूप युष्मद् से बने हैं। (संस्कृत के युष्मद् शब्द का कर्ता एकवचन रूप प्राकृत में तुं, तुमं, और अपभ्रंश में तुह होता है, जिससे तू या तूं और तुम बने हैं।) इसी प्रकार कारकग्राही रूप भी प्राकृत और अपनश के तुज्म के रूप से यने हैं।( 'पाप' रूप संस्कृत के प्रात्मन् शब्द से निकला है, जिसका प्राकृत अप्पा और अपभ्रंश रूप'अप्पण होता है, और जो इसी अथवा अप्पन, अपन श्रादि रूपों में राजपूताने तथा मध्य प्रदेश आदि में श्रय तक प्रचलित है। शेष सब बातें मैं और हम के समान ही हैं। (३) यह-संस्कृत के एतद् शन्द के कर्ता का पकवचन एपः होता है, जिसका प्राकृत में एसो और अपभ्रंश में पहो होता है। इसी से 'यह' के भिन्न भिन्न रूप जैसे-ई, यू.ए, पह आदि बने हैं। इस 'यह' का बहुवचन ये होता है, जो इस एतद् शब्द के अपनश रूप 'एइ' से बना है। कुछ लोग इसे संस्कृत 'इदम्' से भी निकालते हैं, जिसका प्राकृत रूप अयं और अपनश 'श्रा होता है। इसका कारक-चिह्न-ग्राही रूप एतद् के प्राकृत रूप ऐसा, एस, पास्स और अपनश 'पइसु' अथवा 'इदम्' के प्राकृत रूप अस्स और अपनंश 'अयसु' से निकला है। संबंध कारक का रूप भी इसी कारक-चिह्न-ग्राही रूप के अनुसार होता है; केवल विभक्ति ऊपर से लगती है। सर्वनामों में यह विचित्रता है कि उनका संबंध कारक का रूप संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश के पष्ठ्यंत रूप से बनता है। पर इसमें कारक प्रत्यय का समावेश शब्द में हो जाता है और पुनः विभक्ति लगती है। (४) वह, वे-ये संस्कृत के अदस शब्द से निकले हैं जिनका प्राकृत रूप 'प्रह' 'श्रमू' और श्नपनंश रूप 'आर' (बहुवचन ) होता है जिससे अ, बे, ओ, चो, वह, उह श्रादि रूप बने हैं। कारक-चिल-ग्राही तथा संबंध कारक का रूप प्राकृत 'अमुस्स' से निकला है। (५) सो, ते-ये संस्कृत सः, प्राकृत सो, अपभ्रश सो से निकले हैं। बहुवचन संस्कृत का 'ते' है हो। कारक-चिह्न-ग्राही तथा संबंध कारक का रूप संस्कृत तस्य, प्राकृत तस्स, तास, अपनश तासु, तसु से बना है। (६) जो-संस्कृत यः, प्राकृत जो, अपभ्रंश जु। 'जो' प्राकृत से सीधा पाया है। संबंध का विकारी रूप यस्य, जस्स-जासु, जासु जसु-से निकला है। .