पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१४६

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हिंदी भाषा शब्द रह जाते हैं-धातु और प्रातिपदिक (श्रव्युत्पन्न रूढ़ शब्द)। इस प्रकार भाषा रूढ़ और यौगिक-इन्हीं दो प्रकार के शब्दों से बनती है। पर अर्थातिशय की दृष्टि से एक प्रकार के शब्द ऐसे होते हैं जो यौगिक होते हुए भी रूढ़ हो जाते हैं। ऐसे शब्द योगरूढ़ कहे जाते हैं। यह शब्द की तीसरी अवस्था है। जैसे धवल गृह का अर्थ होता है 'सफेदी किया हुआ घर', पर धीरे धीरे धवल गृह का प्रयोगातिशय से 'महल' अर्थ होने लगा। इस अवस्था में धवलगृह योगरूढ़ शब्द है। धवलः गृहः और धवल गृह का अब पर्याय जैसा व्यवहार नहीं हो सकता। यही योगदि संस्कृत के नित्य समासों का मूल कारण है। कृष्णसर्पः है तो यौगिक शब्द, पर धीरे धीरे उसका संकेत एक सर्प-विशेष में रूढ़ हो गया है। अतः वह समस्तावस्था में ही उस विशेष अर्थ का बोध करा सकता है अर्थात् कृष्ण सर्प में नित्य समास है। कुछ विद्वानों ने तो सभी समासों को योगरूढ़ माना है। विग्रह वाक्य की अपेक्षा समास में सदा अर्थ-वैशिष्ट्य रहता है इसी से नैयायिकों के अनुसार समास: में एक विशेष शक्ति श्रा जाती है। सच पूछा जाय तो प्रयोगाति- शय से समृद्ध भाषा के अधिक शब्दों में योगरूदि ही पाई जाती है । प्रार्था- तिशय के विद्यार्थी के लिये योगरूढ़ि का अध्ययन बड़ा लाभकर होता है। साहित्यिक खड़ी बोली में श्राजकल संस्कृत के ही समास अधिक चलते हैं पर डाकघर, रामदाना, लोहूलुहान, मनचाही, मनमानी, मन- हिंदी के समास . चली, पियराकाटी, लाठीमार, गिरहकट, बदरफट, " रातोरात, दुधमुहा, ललमुँहा, पँचमेल, बारह- मजा, रेशमकटरा, बाँस-फाटक, दूधभात, पूड़ी-साग, घर-वार, तन- मन श्रादि के समान तद्भव और ठेठ भाषा के समासे की भी कमी • नहीं है। इन्हीं चलते शब्दों का विचार .भी आवश्यक है। अब यदि इन समस्त शब्दों के स्थान पर हम विग्रहवाक्यों का प्रयोग करें तो क्या कमी अच्छा लगेगा? कभी नहीं। डाक का घर, फटे चादलबाला (घाम) श्रादि विग्रह वाक्यों से डाकघर और बदफट का पूरा अर्थ कभी नहीं निकल सकता। अभिधाशक्तिवाले शब्दों का एक वर्गीकरण हम देख चुके-१ रूढ़, २ यौगिक और ३ योगरूढ़। यह विकास और दूसरा वगाकरण व्युत्पत्ति की दृष्टि से किया जाता है। दूसरा चर्गी- करण देशी विदेशी के भेद और प्रत्यक्ष व्यवहार के आधार पर किया

  • समासे खल्ल भिन्नैव शक्तिः । (शब्दशक्तिप्रकाशिका)