पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१५२

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विपय-प्रवेश साहित्य मनुष्य के इन्हीं विचित्र और अनोखे भावों, विचारों तथा कल्प- नाओं आदि का व्यक्त स्वरूप है, अतः उसमें भी मानव-स्वमाव-सुलभ समी विशेषताएँ होती हैं। साहित्य में जो विचित्रता तथा अनेक- रूपता दिखाई देती है उसके मूल में मानव-स्वभाव की विचित्रता तथा अनेकरूपता है। हम स्वयं देखते हैं कि हमारी प्रवृत्ति सदा एक सी नहीं रहती। कभी तो हम अनेक अनोखी कल्पनाएँ किया करते हैं और कभी बहुत से साधारण विचार हमारे मन में उठते हैं, कभी हम घातचीत करते हैं और कभी कथा-कहानी कहते हैं।.कभी हम जीवन के जटिल तथा गंभीर प्रश्नों पर विचार करते हैं और कभी उसके सरल मनोरंजक स्वरूप की व्याख्या करते हैं, कभी हम आत्मचिंतन में लोन रहते हैं और कभी हमारी दृष्टि समाज अथवा वाहा जगत् पर आ जमती है। सारांश यह कि हमारी प्रवृत्ति सदा एक सी नहीं रहती। प्रवृ- त्तियों की इसी अनेकरूपता के कारण साहित्य में भी अनेकरूपता दिखाई देती है। कविता, नाटक, उपन्यास, आख्यायिका, निबंध आदि जो साहित्य के विभिन्न अंग हैं और इन मुख्य मुख्य अंगों के भी जो •अनेक उपांग हैं, उसका कारण यही है कि मनुष्य की मनोवृत्तियों के भी भनेक अंग और उपांग होते हैं तथा उनकी भी विभिन्न श्रेणियाँ होती हैं। इन अंगों, उपांगों एवं श्रेणियों के होते हुए भी मानव-स्वभाव के मूल में भावात्मक साम्य होता है, अतएव साहित्य में भी अनेकरूपता के होते हुए भी भावना-मुलक समता दिखाई देती है और इसी समता पर लक्ष्य रखते हुए हम साहित्य के इस पक्ष का विवेचन करते हैं। जिस प्रकार मनुष्यों में अपने भावों तथा विचारों को व्यक्त करने की स्वाभाविक इच्छा होती है उसी प्रकार उन भावों तथा विचारों को - सुंदरतम शृंखलावद्ध तथा चमत्कार-पूर्ण बनाने . कलापक्ष . ५ की अभिलापा भी उनमें होती है। यही अभिलापा साहित्य-कला के मूल में रहती है और इसी की प्रेरणा से स्थूल नीरस तथा विखल विचारों को सूक्ष्म, सरस और शृखलावद्ध साहित्यिक स्वरूप प्राप्त होता है। भावों के अभिव्यंजन का साधन भापा है और भाषा के आधारशब्द हैं जो वाक्यों में पिरोए जाने पर अपनी सार्थकता प्रदर्शित करते हैं। श्रतःशब्दों तथा पास्यों का निरंतर संस्कार करते रहने एवं उपयुक्त रीति से उनका प्रयोग करने से ही अधिक से अधिक प्रमावोत्पाद- कता पा सकती है। इसके अतिरिक्त प्रचलित लोकोक्तियों का समुचित प्रयोग तथा भाव-व्यंजन की अनेक आलंकारिक प्रणालियों का उपयोग भी साहित्य-ग्रंथों की एक विशेषता है। कविता में भावों के उपयुक २०