पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१५३

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• हिंदी साहित्य मनोहर छंदों का प्रयोग तो चिरकाल से होता आ रहा है और नित्य नवीन छंदों का निर्माण भी साहित्य के कलापत की पुष्टि करता है। भापा की गति या प्रवाह, वास्यों का समीकरण, शब्दों की लाक्षणिक तथा व्यंजनामूलक शक्तियों का अधिकाधिक प्रयोग ही साहित्य के कलापक्ष के विकास की सीढ़ियाँ हैं, इस विपय का विस्तृत विवरण रीति-ग्रंथों में, मिलता है। संकुचित अर्थ में इसको साहित्य-शास्त्र कहा गया है। इस प्रकार साहित्य के भाव और कलापक्षों का विवेचन करके हम उसके तथ्य को समझ सकते हैं और यह जान सकते हैं कि साहित्य . मनुष्य मात्र के लिये स्वाभाविक है और अपने इस विश्व-हित्य स्वरूप में यह देश और काल की सीमा से यद्ध नहीं है। यदि हम चाहें तो व्यापक दृष्टि से विश्व भर के साहित्य की परस्पर तुलना कर सकते हैं और स्थूल रूप से संसार के प्रसिद्ध प्रसिद्ध कवियों अथवा साहित्य-निर्माताओं की विभिन्न श्रोणियाँ भी निरुपित कर सकते हैं। उदाहरणार्थ हम यूनान के प्रसिद्ध कवि होमर की तुलना संस्कृत के श्रादि कवि वाल्मीकि से कर सकते हैं और कालिदास तथा शेक्सपियर को उत्कृष्ट नाटककारों की श्रेणी में रख सकते हैं। वर्ण्य विषयों के श्राधार पर जायसी तथा उमर खैयाम श्रादि प्रेमप्रधान कवियों की एक श्रेणी हो सकती है; और देव, विहारी, मतिराम श्रादि हिंदी के शृंगारी कवि संस्कृत के श्रमरुक प्रभृति कवियों की कोटि में रखे जा सकते हैं। भावपक्ष की इस समता के साथ कविता के कलापक्ष की तुलना भी व्यापक दृष्टि से की जा सकती है। उदाहरणार्थ केशवदास जैसे कला- प्रधान कवि की तुलना अँगरेज कवि पोप अथवा ड्राइडेन से की जा सकती है; और कवीर जैसे दार्शनिक किंतु अब्यवस्थित भाषा तथा छंदों का प्रयोग करनेवाले कवि को समता ग्राउनिंग आदि से हो सकती है। इसमें संदेह नहीं कि संसार के भिन्न भिन्न देशों के कवियों और साहित्य-निर्माताओं की यह तुलनात्मक आलोचना बड़ी ही विशद और उपादेय होती है। इससे यह जाना जा सकता है कि मनुष्य-मात्र में जातीय और स्थानीय विशेषताओं के होते हुए भी एक सार्वजनीन एकता है और सभी श्रेष्ठ कवियों तथा लेखकों की रचनाओं में भावनामूलक साम्य भी है। निश्चय ही वह भावना मनुष्यमात्र के लिये कल्याण- कारिणी तथा अत्यंत उदार होती है। उत्कृष्ट कोटि के कवियों की कल्पनाएँ एक दूसरे से बहुत अंशों में मिलती-जुलती होती हैं तथा उनकी काव्य-रचना की प्रणाली भी बहुत कुछ समता लिए होती है।