पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१५८

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विषय-प्रवेश १५६ भी साहित्य की हो भौति समन्वय की छाप दिखाई पड़ती है। सारनाथ की बुद्ध भगवान की मूर्ति में ही समन्वय की यह भावना निहित है। वुद्ध की वह मूर्ति उस समय की है जब वे छः महीने की कठिन साधना के उपरांत अस्थिपंजर मात्र हो रहे होंगे, परंतु मूर्ति में कहीं कृशता का पता नहीं, उसके चारों ओर एक स्वर्गीय श्राभा नृत्य कर रही है। इस प्रकार साहित्य तथा कलाओं में भी एक प्रकार का श्रादर्शा- त्मक साम्य देखकर उसका रहस्य जानने की इच्छा और भी प्रबल हो जाती है। हमारे दर्शन-शास्त्र हमारी इस जिज्ञासा का समाधान फर देते हैं। भारतीय दर्शनों के अनुसार परमात्मा तथा जीवात्मा में कुछ भी अंतर नहीं, दोनों एक ही हैं, दोनों सत्य है, चेतन हैं तथा आनंद- स्वरूप हैं। बंधन मायाजन्य है। माया अशान है, भेद उत्पन्न करनेवाली वस्तु है। जीवात्मा मायाजन्य अंशान को दूर कर अपना सच्चा स्वरूप पहचानता है और श्रानंदमय परमात्मा में लीन हो जाता है। श्रानंद में विलीन हो जाना ही मानव जीवन का चरम उद्देश्य है। जब हम इस दार्शनिक सिद्धांत का ध्यान रखते हुए उपर्युक्त समन्वय पर विचार करते हैं, तव उसका रहस्य हमारी समझ में आ जाता है तथा उस विषय में और कुछ कहने सुनने की आवश्यकता नहीं रह जाती। भारतीय साहित्य की दूसरी बड़ी विशेषता उसमें धार्मिक भावों की प्रचुरता है। हमारे यहाँ धर्म की बड़ी व्यापक व्याख्या की गई है और जीवन के अनेक क्षेत्रों में उसको स्थान दिया गया है। धर्म में धारण करने की शक्ति है अतः केवल अध्यात्म पक्ष में ही नहीं, लौकिक श्राचारों-विचारों तथा राजनीति तक में उसका नियंत्रण स्वीकार किया गया है। मनुष्य के वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन को ध्यान में रखते हुए अनेक सामान्य तथा विशेष धर्मों का निरूपण किया गया है। वेदों ।। के एकेश्वरवाद, उपनिषदों के ब्रह्मवाद तथा पुराणों के अवतारवाद और बहुदेववाद की प्रतिष्ठा जन-समाज में हुई है और तदनुसार हमारा धार्मिक दृष्टिकोण भी अधिकाधिक विस्तृत तथा व्यापक होता गया है। हमारे साहित्य पर धर्म की इस अतिशयता का प्रभाव दो प्रधान रूपों में पड़ा। आध्यात्मिकता की अधिकता होने के कारण हमारे साहित्य में एक ओर तो पवित्र भावनाओं और जीवन संबंधो गहन तथा गंभीर विचारों की प्रचुरता हुई और दूसरी और साधारण लौकिक भावों तथा विचारों का विस्तार नहीं हुआ। प्राचीन वैदिक साहित्य से लेकर हिंदी के वैष्णव साहित्य तक में हम यही यात पाते हैं। सामवेद की