पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१५९

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१६० । हिंदी साहित्य मनोहारिणी तथा मृदु-गंभीर ऋचायों से लेकर सूर तथा मीरा श्रादि । की सरस रचनाओं तक में सर्वत्र परोक्ष भावों की अधिकता तथा लौकिक विचारों की न्यूनता देखने में श्राती है। उपर्युक्त मनोवृत्ति का परिणाम यह हुआ कि साहित्य में उच्च विचार तथा पवित्र भावनाएँ तो प्रचुरता से भरी गई, परंतु उसमें लौकिक जीयन की अनेकरूपता का प्रदर्शन न हो सका। हमारी कल्पना अध्यात्म पक्ष में तो निस्सीम तक पहुँच गई परंतु ऐहिक जीवन का चित्र उपस्थित करने में यह कुछ कुंठित सी हो गई। हिंदी की चरम उन्नति का काल भक्तिकाव्य का काल है, जिसमें उसके साहित्य के साथ हमारे जातीय साहित्य के लक्षणों का सामंजस्य स्थापित हो जाता है। धार्मिकता के भाव से प्रेरित होकर जिस सरस तथा संदर साहित्य का सृजन हुना, वह वास्तव में हमारे गौरव की वस्तु है; परंतु समाज में जिस प्रकार धर्म के नाम पर अनेक ढोंग रचे जाते हैं तथा गुरुडम की प्रथा चल पड़ती है, उसी प्रकार साहित्य में भी धर्म के नाम पर पर्याप्त अनर्थ होता है। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में हम यह अनर्थ दो मुख्य रूपों में देखते हैं। एक तो सांप्रदायिक कविता तथा नौरस उपदेशों के रूप में और दूसरा "कृष्ण" का श्राधार लेकर की हुई हिंदी के गारी कवियों को कविता के रूप में। हिंदी में सांप्रदायिक फचिता फा एक युग ही हो गया है और "नीति के दोहों" की तो अब तक भरमार है। अन्य दृष्टियों से नहीं तो कम से कम शुद्ध साहित्यिक समीक्षा की दृष्टि से ही सही, सांप्रदायिक तथा उपदेशात्मक साहित्य का अत्यंत निम्न स्थान है। क्योंकि नीरस पदावली में कोरे उपदेशों में कवित्व को माना बहुत थोड़ी होती है। राधाकृष्ण को आलंबन मानकर हमारे शृंगारी कवियों ने अपने कलुपित तथा वासनामय उद्गारों को व्यक्त करने का जो ढंग निकाला यह समाज के लिये हितकर सिद्ध न हुआ। यद्यपि श्रादर्श की कल्पना करनेवाले कुछ साहित्य-समीक्षक इस शृंगारिक कविता में भी उच्च श्रादशी की उद्भावना कर लेते हैं, पर फिर भी हम वस्तुस्थिति की किसी प्रकार अवहेलना नहीं कर सकते। सब प्रकार की शृंगारिक कविता ऐसी नहीं है कि उसमें शुद्ध प्रेम का अभाव तथा कलुपित वासनाओं का ही अस्तित्व हो; पर यह स्पष्ट है कि पवित्र भक्ति का उच्च श्रादर्श, समय पाकर, लौकिक शरीरजन्य तथा वासनामूलक प्रेम में परिणत हो गया था। । यद्यपि भारतीय साहित्य की कितनी ही अन्य जातिगत विशेप- ताएँ हैं, परंतु हम उसकी दो प्रधान विशेषताओं के उपर्युक्त विवेचन से