पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१६०

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विषय-प्रवेश - ही संतोप करके, उसकी दो एक देशगत विशेषताओं का वर्णन करके यह प्रसंग समाप्त करेंगे। प्रत्येक देश के जलवायु अथवा भौगोलिक स्थिति साहिन की शान का प्रभाव उस देश के साहित्य पर अवश्य पड़ता विशेषताएँ है और यह प्रभाव बहुत कुछ स्थायी भी होता है। संसार के सव देश एक ही प्रकार के नहीं होते। जलवायु तथा गर्मी सर्दी के साधारण विभेदों के अतिरिक्त उनके प्राकृतिक दृश्यों तथा उर्वरता श्रादि में भी अंतर होता है। यदि पृथ्वी पर अरय तथा सहारा जैसी दीर्घकाय मरुभूमियाँ हैं तो साइवीरिया तथा रूस के विस्तृत मैदान भी हैं। यदि यहाँ इँगलैंड तथा श्रायलैंड जैसे जलावृत द्वीप हैं तो चीन जैसा भूखंड भी है। इन विभिन्न भौगोलिक स्थितियों का उन देशों के साहित्यों से संबंध होता है, इसी को हम साहित्य की देशगत विशेषता कहते हैं। भारत की सस्यश्यामला भूमि में जो निसर्गसिद्ध सुपमा है, उससे भारतीय कवियों का चिरकाल से अनुराग रहा है। यों तो प्रकृति की जदीकी देशात साधारण वस्तुएँ भी मनुप्यमान के लिये आकर्षक विशेषताएँ " होती हैं, परंतु उसको सुंदरतम विभूतियों में मानव वृत्तियाँ विशेष प्रकार से रमती हैं। अरब के कवि मरुस्थल में यहते हुए किसी साधारण से झरने अथवा ताड़ के लंबे लंबे पेड़ों में ही सौंदर्य का अनुभव कर लेते हैं तथा ऊँटों की चाल में ही सुंदरता की कल्पना कर लेते हैं; परंतु जिन्होंने भारत को हिमाच्छादित शैलमाला पर संध्या की सुनहली किरणों की सुपमा देखी है, अथवा जिन्हें घनी श्रमराइयों को छाया में कल कल ध्वनि से बहती निरिणी तथा उसकी समीपवर्तिनी लताओं की वसंतश्री देखने का अवसर मिला है, साथ ही जो यहाँ के विशालकाय हाथियों की मतवाली चोल देख चुके हैं उन्हें अपच की उपर्युक्त वस्तुत्रों में सौंदर्य तो पपा, हाँ उलटे नीरसता, शुष्कता और भद्दापन ही मिलेगा। भारतीय कवियों को प्रकृति को सुरम्य गोद में क्रीडा करने का सौभाग्य प्राप्त है: चेहरे भरे उपवनों में तथा सुंदर जलाशयों के तटों पर विचरण करते एवं प्रकृति के नाना मनोहारी रूपों से परिचित होते हैं। यही कारण है कि भारतीय कवि. प्रकृति के संश्लिष्ट तथा सजीव चित्र जितनी मार्मिकता, उत्तमता तथा अधिकता से अंकित कर सकते हैं एवं उपमा-उत्प्रेक्षाओं के लिये जैसी सुदर वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं, वैसा रूखे-सूखे देशों के निवासी कवि नहीं कर सकते। यह भारतभूमि की ही विशेषता है कि यहाँ के फवियों का प्रकृति-वर्णन तथा तत्संभव सौंदर्यज्ञान उच्च कोटिका होता है। २१