पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१६९

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दूसरा अध्याय भिन्न भिन्न परिस्थितियों हम पहले अध्याय में यह कह चुके है कि देश और काल से साहित्य का अविच्छिन्न संबंध है, और प्रत्येक देश के विभिन्न कालों की सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक श्रादि स्थितियों का प्रभाव उस देश के साहित्य पर पड़ता है। जिस प्रकार साहित्य कला में देशगत और कालगत भेद होते हैं, उसी प्रकार अन्य ललित कलाएँ भी देश और काल के अनुसार अपना रूप बदला करती हैं। साहित्य का विकास ठीक ठीक तभी हृदर्यगम हो सकता है जब अन्य ललित कलाओं के विकास का इतिहास भी जान लिया जाय और उनके विकास का स्वरूप समझने का प्रयास किया जाय। श्रत.हिंदी साहित्य के विकास का इतिहास लिसने से पहले उत्तर भारत की उन राजनीतिक और सामाजिक श्रादि प्रगतियों फा जान लेना भी आवश्यक है जिनसे प्रभावान्वित होकर हिंदी साहित्य पुष्पित और पल्लवित हुश्रा हे, और जो उसके विकास में सहायक हुई है। इसी प्रकार वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीतकला आदि विभिन्न ललित कलाओं की प्रगति भी समझ लेनी चाहिए, क्योंकि साहित्यकला भी इन्हीं में से है और उनमें सबसे ऊंचे स्थान की अधि- कारिणी है। अतएव इस अध्याय में हम उत्तर भारत की राजनीतिक सामाजिक सांप्रदायिक तथा धार्मिक श्रादि अवस्थाओं का और अगले श्नध्याय में उस काल की ललित कलायों का संक्षेप में दिग्दर्शनाकरायेंगे। हिंदी साहित्य के विकास से ठीक ठीक परिचित होने के लिये उपर्युक्त दोनों बातों का जान लेना बहुत आवश्यक है। उत्तर भारत में हर्षवर्द्धन अंतिम हिंदू सम्राट हुश्रा जिसने अपने प्रभाव, बल और शौर्य से समस्त उत्तरापय में अपना एकाधिपत्य स्थापित पर्याभास किया और जो अपनी धर्मवुद्धि तथा शासननीति के कारण प्रजा को सुख-समृद्धि-पूर्ण करके देश के महान् शासकों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुआ। उसके शासनकाल में भारत ने यह शांति और मुव्यवस्था पाई थी जो उसे विशाल मोर्य तथा गुप्त साम्राज्यों में ही मिली थी। उस काल के चीनी यानी हुएन्सांग के वर्णनों में तत्कालीन सामाजिक स्थिति का जो दिव्य चिन दिखाई