पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१७०

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भिन्न भिन्न परिस्थितियां पड़ता है, उसकी समता इस देश के इतिहास में कठिनता से मिल सकती है। धार्मिक अवस्था भी बहुत ही संतोपजनक थी। यद्यपि वौद्ध धर्म अपनी चरम उन्नति के उपरांत शिथिल पड़ता जा रहा था और वैदिक ब्राह्मण धर्म की फिर से प्रतिष्ठा होने लगी थी; पर यह कार्य वड़ी ही शांति के साथ, विप्लव-विद्रोह-रहित रूप में हो रहा था। हर्षवर्द्धन स्वयं धर्मप्राण नृपति था; पर उसमें वह धार्मिक कट्टरपन नाम को भी नहीं था जिससे क्रांति और हिंसा को प्रश्रय मिला करता है। तर्क और बुद्धि की महत्ता से अपने अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार सबको था; और राज्य की श्रोर से भी समय समय पर ऐसी धार्मिक सभाएँ हुआ करती थीं, पर उनमें पक्षपात या विद्वेप का भाव नहीं रहता था। इस प्रकार की धार्मिक उदारता हर्षवर्द्धन की उन्नति का मुख्य कारण थी। प्रजा भी उसकी उदार नीति और सुचारु शासन से प्रसन्न होकर राजभक्त बनी थी। सारांश यह कि फ्या राजनीतिक, क्या सामाजिक और क्या धार्मिक सभी दृष्टियों से हर्षवर्द्धन का शासनकाल देश के लिये बहुत ही कल्याणकर हुश्रा और उसमें भारत के यल-वैभव की भी विशेष वृद्धि हुई। आदि काल हर्षवर्द्धन की मृत्यु विक्रम संवत् ७०४ में हुई। उसके पीछे का भारतवर्ष का इतिहास आपस के लड़ाई झगड़ों का इतिहास है। हर्ष सांस्कृतिक स्थिति की मृत्यु के साथ ही हिंदुओं के अंतिम साम्राज्य ____ का अंत हो गया और देश खंड खंड होकर विभिन्न अधिपतियों के हाथों में चला गया। हर्ष के साम्राज्य के भिन्न भिन्न, अंशों पर अनेक खंड राज्य स्थापित हुए जो श्राधिपत्य के लिये प्रापस में लड़ते रहे। इनमें मुख्य तोमर, राठौर, चौहान, चालुक्य और चंदेल थे। इनकी राजधानियाँ दिल्ली, कन्नौज, अजमेर, धार और कालिंजर में थी। हमारे हिंदी साहित्य का इतिहास उस समय से प्रारंम होता है जय ये राज्य स्थापित हो चुके थे। यद्यपि मुसलमानों का भारतवर्ष में पहले पहल श्रागमन सलीफा उमर के समय में संवत् ६६३ में हुआ था और इसके अनंतर सिंध पर निरंतर उनके आक्रमण होते रहे थे, पर ये श्राक्रमण लूट-पाट के उद्देश से होते थे, राज्य स्थापन की कामना से नहीं होते थे। पीछे से ये लोग यहाँ यसने और जीते हुए प्रदेश पर अपना शासनाधिकार जमाने के अभिलापो हुए। कुछ राजवंश मुलतान, मनसूरा मादि में स्थापित