पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१७८

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भिन्न भिन्न परिस्थितियाँ उस सिद्धांत पर अवलंबित था जिसका आविर्भाव इस देश में मुसलमानों के श्रोने से बहुत पहले हो चुका था। इस नवीन धार्मिक आंदोलन का अन्य क्षेत्रों पर जो प्रभाव पड़ा, वह तो पडा ही, साहित्यक्षेत्र भी उसके शुभ परिणाम-स्मरूप अनंत उर्वर हो उठा और अनेक प्रतिभाशाली कवियों की वाणी से असंख्य जनता अपूर्व शांति और श्राशा से लहलहा उठी। यहाँ पर हम इस आंदोलन का संक्षिप्त विवरण दे देना प्रापश्यक सम- झते हैं क्योंकि इसका हिंदी साहित्य के विकास से बहुत घनिष्ठ संबंध है। हम पहले कह चुके हैं कि शंकर स्वामी ने बौद्ध धर्म को दबाकर भारतीय जन समाज में वैदिक धर्म की पुन प्रतिष्ठा की थी। महात्मा शंकर ने थतियों को ही प्रमाण मानकर अद्वैतवाद' का प्रचार किया था , और ब्रह्म सत्य तथा जगत् मिथ्या का सिद्धांत प्रतिपादित और प्रतिष्ठित किया था। "ब्रह्म से विभिन्न कोई सत्ता नहीं है, जीव भी ब्रह्म ही है। और जगत् भी ब्रह्म ही है। माया ब्रह्म की ही शक्ति है जिसके कारण ब्रह्म और जीव का अभेद प्रतीत नहीं होता। संक्षेप में शंकर फा यही सिद्धांत है। व्यापक ब्रह्म की कल्पना से महात्मा शंकर ने पुनः उस श्राध्यात्मिक उदारता को समाज में प्रतिष्ठित करने की चेष्टा की जो इस देश की घडी पुरानी विशेपता थी किंतु जी समय के फेर से सांप्र- दायिक संकीर्णता और मतमतांतरों की विविधता के अंधकार में लुप्त हो रही थी। इससे हिंदू जाति को एकता के सून में ग्रथित होने तथा श्रात्म-शक्ति का संचय करने की प्रेरणा प्राप्त हुई। तुलसीदास आदि महात्माओं तथा कवीर श्रादि संतों ने समान रूप से इसका प्राधार ग्रहण कर अपनी काव्य-भूमि का निर्माण किया। सांसारिक तथा व्यावहारिक श्रादों में इस मत के परिणाम स्वरूप एक स्वच्छंद प्राकृतिक प्रवृत्ति का प्रकाश फैला क्योंकि इस मत ने अनेक यौद्धिक और कृतिम रूढिगत बंधनों को नष्ट कर दिया। इस संन्यास-मत के फल-स्वरूप उच्च कोटि के दार्शनिक कचियों और महात्माओं का आविर्भाव हुआ जिनसे हिंदी साहित्य की अपूर्व उन्नति हुई। एक प्रकार से महात्मा शंकर की ही प्रयल प्राध्यात्मिक प्रेरणा से मध्यकालीन धार्मिक अांदोलन की प्राण- प्रतिष्ठा हुई जिसका अमित प्रभाव हिंदी साहित्य पर पड़ा। शांकर मत का मायावाद, कुछ विद्वानों के विचार से, जनता में निराशा फैलाने तथा भाग्य को प्रधानता प्राप्त कराने में सहायक हुश्रा। परंतु इस विषय में हमारा बहुत कुछ मतभेद है। शांफर अद्वैतवाद अपनी उपर्युक्त विशेषताओं के होते हुए भी भक्ति या उपासना का सुदृढ आलंवन न उपस्थित कर सका। उसके