पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८४

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भिन्न भिन्न परिस्थितियां किया और अवध को अपने पंजे में किया। महादजी के हटने से मराठों की शक्ति कम होने लगी। लार्ड वेलेजली के समय में मराठे उत्तर भारत में शक्तिहीन हो गए। पर इतने में ही सिख शक्ति वीर रणजीतसिंह के नेतृत्व में संघटित होकर मैदान में आई। काश्मीर और पेशावर तक के प्रांत सिखों के थे। परंतु रणजीतसिंह की मृत्यु (१८६६) के उपरांत सिख साम्राज्य भी स्थिर न रह सका। संवत् १९०५ के सिख-युद्ध में अँगरेजों की विजय हुई और सिख साम्राज्य का अंत हो गया। इस प्रकार ब्रह्मपुत्र और सिंध नदियों के बीच का विशाल उत्तर भारत अँगरेजों का हो गया। राजनीतिक उथल-पुथल के इस युग में जनता की अवस्था कितनी भयानक थी, इतिहासकार इसके संबंध में चुप नहीं हैं। वंगाळ सामाजिक था की दोहरी शासनप्रणाली (Double govern- _ment) के कारण जो दुर्दशा थी, वह तो थी ही, मराठों के उत्पात और अँगरेजों की व्यापारिक नीति से उसकी और भी शोचनीय स्थिति हो गई। नए बंदोबस्त से जमींदारों को धक्का लगा और किसानों पर कड़ाई से कर लेने की प्रथा चल निकली। इस तरह व्यापार और कृपि के चौपट हो जाने से जनता की आर्थिक दुरवस्था भीपण हो गई और वेकारी के कारण ठगी का श्राश्रय लिया जाने लगा। गांवों के प्राचीन संघटन में भी बाधा डाली गई और पंचायतों की जगह ऐसी अदालतों का प्रचार हुश्रा जिनकी दंडविधि से कोई परिचित ही न था। अँगरेज जजों को भारतीय रीति-नीति का पता न था और दूसरी ओर हिंदुस्तानियों को अपने नए शासकों के कानूनों का शान न था। इसका फल यह हुआ कि वकीलों की एक नई श्रेणी निकल पड़ी। कार्नवालिस के समय से हिंदुस्तानियों को बड़ी सर्कारी नौकरियों न दी जाने लगी क्योंकि उसका विश्वास था कि हिंदुस्तानी झूठे श्रीर घूसखोर होते हैं। संवत् १८६० से यह नीति कुछ कुछ बदली। शासन और न्याय का काम यहुत बढ़ जाने के कारण हिंदुस्तानियों की सहायता लेना अनिवार्य हो गया। तभी से देश के शासन का कुछ अंश यहाँ के निवासियों को भी दिया जाने लगा। हिंदुयों और मुसलमानों को एक बनाने के लिये सिख धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था परंतु मुसलमान शासकों की संकीर्ण नीति के कारण धार्मिक अवस्था मुसलमान सिखों के घोर विरोधी धन बैठे। अँगरेजों के साथ साथ ईसाई मत का भी प्रचार हुश्रा। यद्यपि प्रकट रीति से सरकार की ओर से भारतीयों के धार्मिक २४