पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८७

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१८८ हिंदी साहित्य प्रतिकार को महात्मा गांधी के प्रसिद्ध असहयोग आंदोलन ने अहिंसा. स्मक बना रखा। संसार के इतिहास में इस प्रकार के अहिंसात्मक अस्त्रों का प्रयोग प्रायः नवीन है। देश में चारों ओर उद्वेगपूर्ण जागति देख पड़ती है, पर भविष्य अव तक अंधकार की गोद में है। राजनीतिक क्षेत्र की नवीन जागर्ति ने इस समय जी चकाचौंध सी उत्पन्न कर दी है, उसके कारण हम राष्ट्र के अन्य उद्योगों को कम मनोमी पनि देख पाते हैं, पर हमको यह स्मरण रखना चाहिए कि राजनीति तो राष्ट्र की सर्वतोमुखी उन्नति का एक अंग मान है, वही सव कुछ नहीं है। राष्ट्र की चेतना अकेली राजनीति की श्रोर मुककर बहुत शुभ परिणाम नहीं उपस्थित कर सकती। उसका विकास प्रत्येक क्षेत्र में होना चाहिए। हमको यह देखकर बड़ी प्रसन्नता होती है कि आधुनिक भारतीय मनोवृत्ति यद्यपि राजनीति की ओर विशेप उन्मुख है, पर अन्य दिशाओं में भी प्रशंसनीय और संतोपपद उद्योग हो रहे हैं। हमारा विशेप संबंध साहित्य से है और हम यह स्वीकार करते हुए बड़े प्रसन्न हो रहे हैं कि इस समय हिंदी साहित्य के अनेक अंगों की बड़ी सुंदर पुष्टि हो रही है। हिंदी को राष्ट्रीय भाषा कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ है, और महात्मा गांधी तथा अन्य बड़े बड़े नेताओं के प्रयत्न से इसका देशव्यापी प्रचार हो रहा है। यदि 'हिंदी साहित्य के सभी अंगों का विकास इसी प्रकार होता रहा और यदि इसकी व्यापकता और सौष्ठव को मानकर देश ने इसको राष्ट्र- भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया, तो वह दिन दूर नहीं है जब हिंदी भापा का साहित्य भी इस देश में व्यापक होकर राष्ट्र के प्रगतिशील भावों और विचारों का अभिव्यंजन कर सकेगा और संसार के अन्य श्रेष्ठ और बड़े साहित्यों के समकक्ष होकर मानव समाज के लिये कल्याणकर और आदरणीय सिद्ध होगा।