पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८८

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तीसरा अध्याय ललित कलाओं की स्थिति साहित्य के इतिहास की इस साधारण श्राकार की पुस्तक में वास्तुकला, चित्रकला तथा संगीतकला श्रादि की स्थिति का परिचय ललित कलाओं का स्थान देना उचित है या नहीं, अथवा उपयोगी है या नहीं इन बातों में मतभेद हो सकता है। हिंदी साहित्य के जो इतिहास-ग्रंथ इस समय तक निकले हैं, उनमें इन ललित कलाओं का विवरण नहीं दिया गया है। अँगरेजी की साहित्यिक इतिहास की पुस्तकों में भी इस ओर कम ध्यान दिया गया है। संभव है कि उसकी आवश्यकता भी न समझी गई हो। परंतु हमारी सम्मति में साहित्यिक इतिहास की पुस्तकों में उपर्युक्त ललित कलाओं की समसामयिक प्रगति का प्रदर्शन उचित ही नहीं, उपयोगी भी है। साहित्य स्वयं एक ललित 'कला है; अतः अन्य ललित कलाओं के साथ उसका घनिष्ठ संबंध प्रत्यक्ष है। साथ ही राष्ट्र के विकास के इतिहास में कलाओं के समन्वित विकास का भी इतिहास विशेष रोचक होता है। हम तो विविध कलाओं को कल्पना एक परिवार के रूप में ही करते हैं, यद्यपि उस परिवार के विभिन्न व्यक्तियों की अलग अलग विशेषताएँ होती हैं। जय दो राष्ट्रों तथा दो विभिन्न संस्कृतियों का संघर्प होता है, तव तो ललित कलाओं की स्थिति में बड़े ही मार्मिक परिवर्तन होते हैं, जिनका ठीक टीक स्वरूप हम तभी समझ सकते हैं जब उनका एकत्र विचार करें। इसके अतिरिक्त सबसे मुख्य बात यह है कि सभी कलाओं की उत्पत्ति मानव-मस्तिष्क से होती है; अतः जब हम किसी विशेष देश के किसी विशेष काल की जनता की चित्त-वृत्तियों का पता लगाना चाहेंगे, तय हमें उस देश तथा उस काल के साहित्य का ही अनुसंधान न करना पड़ेगा अपितु अन्य कालाओं की भी खोज करनी पड़ेगी। केवल साहित्य के इतिहास से जनता की चित्त-वृत्ति का जो अन्वेषण किया जाता है, यह एकांगी ही नहीं, भ्रामक भी हो सकता है। साहित्य और फलाओं का सम्मिलित अध्ययन करने में एक बड़ी पाधा उन श्रालंकारिकों और साहित्यिक प्राचार्यों के द्वारा उपस्थित की जाती है जिनके मत से रस या अलौकिक आनंद का अनुभव साहित्य के