पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१९४

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ललित कलाओं की स्थिति १६५ का उपासनागृह चारों ओर से खुला और अधिक फैला हुआ रहता है जिससे उसमें भव्यता का समावेश होता है। हिंदुओं ने सीधे स्तंभों का प्रयोग किया था, परंतु मुसलिम मस्जिदों में प्रायः मिहरावदार खंभे देते थे। मंदिर के शीर्ष पर कलश बनते हैं, मस्जिदों में गुंबद होते हैं। परंतु इन साधारण विभेदों के अतिरिक्त उनकी एक दूसरी विभिन्नता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हिंदू मंदिरों में मूर्तियाँ होती हैं, मुसलिम मस्जिदों में नहीं होती। हिंदुओं ने ब्रह्म की व्यक्त सत्ता पर जोर देकर सगुणोपासना का जो मार्ग प्रशस्त किया था, उसमें मूर्तियों के लिये स्थान था। हिंदू अपने इएदेवों की सुंदर मूर्तियाँ बनाकर उनकी वेप- भूपा का विधान भी करते थे। उनकी यह कला अद्वितीय है। परंतु मुसलमानों ने मूर्तियों तथा चिनों का घोर निषेध कर रखा था। उनकी 'मस्जिदें भूतियों के न होने से उजाड़ सी जान पड़ती हैं। हिंदुओं के मंदिरों में मूर्तियों के कारण मानों सजीवता श्रा जाती है। साथ ही मस्जिदों के विस्तार में अनंतता की कुछ छाया झलकती है। इन विभेदों के साथ ही मंदिर तथा मस्जिद में बहुत सी समान- . ताएँ भी होती हैं। हमारा तो विचार है कि समानताशों के कारण दोनों शैलियों के सम्मिश्रण में सुगमता ही नहीं हुई होगी प्रत्युत उसको उत्तेजना भी मिली होगी। मंदिरों तथा मस्जिदों में समान रूप से आँगन होते हैं, जो खंभों श्रादि से परिवृत रहते हैं। ये आंगन पूरे एशिया महाप्रदेश की विशेषता है। इसके अतिरिक्त हिंदू तथा मुसलिम वास्तुकला में सजावट अथवा गार की ओर सामान्य प्रवृत्ति होती है। चेप-भूपा के विना दोनों का काम नहीं चलता। हाँ, इतना अवश्य है कि हिंदू वास्तुकारों में श्रृंगार को प्रेरणा स्वाभाविक होती है, उन्हें यह परंपरागत रीति से प्राप्त हुई है, और मुसलमान वास्तुकारों ने इसे दूसरों से ग्रहण किया था। भारत में आने पर मुसलमानों का बनाव-सिंगार की अोर विशेष मुकाव हुश्रा। हिंदू स्थापत्य की एक ही शैली समस्त देश में व्याप्त नहीं थी। उत्तरी भारत में ही उसकी कई शाखाएँ थीं। इतने विस्तृत देश में शैली-भेद का होना स्वाभाविक है भी। जिस प्रकार यहाँ अनेक भाषाएँ प्रचलित थी, जिस प्रकार यहाँ अनेक धार्मिक संप्रदाय चल रहे थे, जिस प्रकार यहाँ अनेक विदेशियों ने श्राफर प्रभाव डाले थे तथा जिस प्रकार यहां के विभिन्न प्रदेशों की जलवायु और मौगोलिक स्थिति श्रादि भिन्न भिन्न हैं, उसी के अनुरूप यहाँ के स्थापत्य में भी अनेक प्रांतीय विभेद हुए। परंतु इन विभेदों के होते हुए भी जिस प्रकार समस्त देश में एक