पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१९५

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हिंदी साहित्य ही ढंग की संस्कृति तथा एक ही ढंग फो सभ्यता का विकास हुआ था उसी प्रकार यहां के स्थापत्य में सामूहिक एकता भी व्यंजित हुई थी। विजयी मुसलमान जय क्रम क्रम से उत्तर भारत के विभिन्न प्रदेशों में फैल गए, तब उन्होंने उन प्रदेशों में प्रचलित स्थापत्य का अपने ढंग पर उपयोग किया। जिन स्थानों में मंदिर ढहाकर मस्जिदों की रचना हुई, यहाँ तो उन स्थानों को घास्तुकला का श्राधार ग्रहण ही किया गया, पर जिन स्थानों में स्वतंत्र रूप से इमारतें बनवाई गई, वहाँ भी अधिकतर प्रांतीय शैलियों का ही प्राश्रय लिया गया। यहां कुछ उदा. हरण दे देना आवश्यक होगा। । दिल्ली प्रारंभ से ही मुसलमानों का केंद्र रही थी। यहां चे सबसे अधिक प्रभावशाली भी थे, और यहीं उन्हें अपनी संस्कृति की रक्षा तथा विकास का सबसे अधिक अवसर भी मिला था। परंतु दिल्ली की प्रसिद्ध मुसलिम इमारतों में भी भारतीय स्थापत्य की छाप स्पष्ट देख पड़ती है। प्रारंभ में तो मुसलमान विजेताओं ने स्थानीय मंदिरों को तोड़कर • मस्जिदों की स्थापना की थी, अतः उस काल की इमारतों में भारतीय ) शैली प्रत्यक्ष ही है, परंतु दिल्ली की उत्तरकालीन इमारतों से भी इस देश की स्थापत्यंसंबंधिनी विशेषताएँ लुप्त नहीं हो सकी। यद्यपि दिल्ली के कुछ शासक अरब की संस्कृति को भारत में अनुएण रखना चाहते थे, और वे धार्मिक कट्टरपन के उच्चतम प्रतिनिधि थे, फिर भी उनके निर्मित भवनों तथा मस्जिदों आदि में शुद्ध मुसलिम स्थापत्य नहीं मिलता। दिल्ली को छोड़कर अन्य स्थानों में मुसलमानों को न तो ऐसे साधन ही प्राप्त थे और न उनकी ऐसी प्रवृत्ति ही थी कि घे इस देश में रहकर यहाँ के स्थापत्य की अवहेलना कर सकें और अरव की कारीगरी का निर्वाह कर सकें। जौनपुर तथा दक्षिण की मुसलिम इमारतों में भारत तीय प्रभाव अत्यधिक स्पष्ट है। बंगाल की मस्जिदें ईट की बनी हुई हैं जो भारत की ही वस्तु है। उनका सजाव-श्रृंगार भी बंगाली है। अलाउद्दीन खिलजी के समय से ही गुजरात पर मुसलमानों का अधिकार हो गया था और यहाँ अहमदाबाद की मस्जिदों आदि में मुसलिम शैली का मिश्रित रूप, अजमेर के ढाई दिन के भोपड़े के समान, स्पष्ट देख पड़ता है। इसी प्रकार काश्मीर में भी भवननिर्माण के लिये मार- तीय शैली ही ग्रहण की गई। पूर्व परंपरा के अनुसार मुसलिम काल में भी वहाँ लकड़ी पर कारीगरी की गई, जो अपने ढंग की अनुपम है। हिंदी साहित्य का उद्भव चंद बरदाई के कुछ पहले ही, विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य भाग के लगभग, हुधा था। वह हिंदी का