पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१९६

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ललित कलाश्री की स्थिति वीर गाथा-काल था- जो तेरहवीं शताब्दी तक चलता रहा और वीर हम्मीर के पतन के उपरांत समाप्त हुआ। उसके उपरांत हिंदी साहित्य का भक्तिकाल प्रारंभ हुआ जिसके उन्नायक कवीर, जायसी, सूर, तुलसी श्रादि हुए, जिनकी वाणी में अभूतपूर्व पवित्रता तथा सरसता का सन्नि- वेश हुआ। यदि इस काल को हम पूर्व मध्य काल कहें तो उत्तर मध्य काल में हिंदी साहित्य के शृंगारी कवियों की उत्पत्ति हुई जिनकी मुक्तक रचनात्रों में श्रृंगारिकता का प्रशस्त प्रवाह देख पड़ता है। इसी समय हिंदी के प्रसिद्ध वीर कवि भूपण का अभ्युदय भी हुआ पर वे प्रवल वेग से उमड़ी हुई भंगार-धारा फा अवरोध न कर सके। उसका वास्तविक अवरोध आगे चलकर भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय में हुश्रा। वहीं से हिंदी का आधुनिक काल श्रारंभ होता है। इस काल में साहित्य की अनेकमुखी प्रगति हुई और साहित्य-निर्माण में गद्य का प्रयोग प्रारंभ हुआ। यह आधुनिक चिकास बहुत कुछ पश्चिमीय ढंग पर हो रहा है, यद्यपि पाश्चात्य श्रावरण में भारतीय श्रात्मा की रक्षा का प्रयास भी साथ ही साथ किया जा रहा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि . हिंदी-साहित्य का काल क्रमानुसार कई विभागों में बांटा जा सकता है। जिस प्रकार साहित्य का कालविभाग होता है, उसी प्रकार अन्य कलाएँ भी समयानुसार अपना स्वरूप बदलती रहती हैं। उनका स्वरूप-परिवर्तन अधिकतर साहित्य के स्वरूप परिवर्तन के अनुरूप ही हुश्रा करता है। क्योंकि साहित्य की ही भांति अन्य फलाएँ भी जनता की चित्तवृत्ति पर अवलंवित रहती और उन चित्तवृत्तियों के हेर फेर के साथ स्वयं भी परिवर्तित होती रहती हैं। यहाँ हम विभिन्न ललित कलात्रों का वर्णन सुगमता के लिये हिंदी साहित्य के उपर्युक्त कालविभाग के अनु- सार करेंगे। वास्तुकला तथा मूर्तिकला ऊपर हमने हिंदू तथा मुसिलम स्थापत्य का जो भेद घतलाया है, उससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मूर्तियों का निर्माण मंदिर- स्थापत्य का अविच्छिन्न अंश है, अतः मूर्तिकला श्राद काल का विकास वास्तुकला के साथ युगपद् रूप में हुआ है। मुसलिम स्थापत्य में तो इस कला का कहीं पता भी नहीं मिलता; क्योंकि अपने धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार मुसलमान मूर्ति पूजा की फोन कहे मूर्ति निर्माण तक को कुफ समझते थे, परंतु हिंदुओं के मंदिरों में मूर्तियों को सदा से प्रधान स्थान प्राप्त रहा है।