पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२००

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ललित कलाओं की स्थिति २०१ सव अपने ढंग को बहुत ही उच्च कोटि की इमारते हैं। जहाँगीर ने अकवर की परंपरा के रक्षण की चेष्टा की। उसने आगरे के किले में आँगनदार महल तथा लाहौर और काश्मीर में शालामार बाग बनवाए जिनमें फौवारों, जल-प्रपात तथा प्रवाह का सौंदर्य दर्शनीय है। मुगलों के स्थापत्य का चरम उत्कर्प शाहजहाँ की मियतमा मुमताजमहल का मकबरा ताजमहल है जो एक रत्नजटित आभूपण सा सुंदर एवं मनो- मोहक बना है। इसकी गणना संसार की कतिपय सर्वोत्कृष्ट मानव- रचनाओं में विशेष श्राद के साथ की जाती है। दिल्ली में शाहजहाँ का वनवाया हुआ लाल पत्थर का किला तथा घड़ी जामा मस्जिद आदि अन्य उत्कृष्ट स्थापत्य भी उल्लेखनीय है। यह तो शासकों की कृतियों का उल्लेख हुआ। इसके अतिरिक्त अनेक मुसलमान मांडलिकों की कृतियाँ भी उत्कृष्ट हुई हैं जिनमें जौनपुर तथा गुजरात की, विशेषकर अहमदाबाद की, कुछ इमारतें अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। विहार में शेरशाह का सहसरामवाला मकवरा भी अपने ढंग का अद्वितीय समझा जाता है। इसका सौम्य तथा गंभीर रूप ही इसकी विशेषता है। इस काल की प्रायः सभी इमारतों में भारतीय भवन-निर्माण-विधि का पूरा पूरा संयोग है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि इस समय हिंदू और मुसलमान एक साथ रहकर हेल-मेल रखना भी सीख रहे थे। मूर्तिकला का ह्रास इस युग तथा इसके परवर्ती युग की प्रधान विशेषता है। चित्तौड़ का महाराणा कुंभा का कीर्ति-स्तंभ और मीरा- वाई का (कुंभस्वामी) मंदिर भी प्रसिद्ध है। संवत् १५४३ का बना हुना ग्वालियर का किला, १६४७ वि० में निर्मित वृदावन का गोविंद देव का मंदिर और इसी समय के लगभग चना काशी विश्वेश्वर का प्राचीन मंदिर भी इसी श्रेणी की इमारतें हैं। इन सवमें कुछ न कुछ मुसलिम प्रभाव अवश्य मिलता है। यद्यपि महाराणा कुंभा के कीर्ति- स्तंभ में बहुत सुंदर मूर्तियाँ यनी हुई हैं, परंतु उनमें इस काल का द्वास प्रत्यक्ष लक्षित हो जाता है। संवत् १६४६ से १६८७ तक की धनी मानसिंह की भामेर की इमारतों में मुसलिम स्थापत्य की छाप यदुत अधिक पड़ी। वे दिल्ली के दीवान श्राम की असफल नकल है। राज. पूताने की वर्तमान भवन-निर्माण-शैली का जन्म यहाँ से होता है। अकबर के समय में बुंदेलखंड में प्रसिद्ध वीरसिंहदेव हुए। उस समय वहाँ हिंदू संस्कृति की जो नवजागर्ति देख पड़ी थी, उसका प्रभाव स्थापत्य पर कम नहीं पड़ा। श्रोडछे का सुंदर नगर तथा उसमें चतु- २६