पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२१०

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ललित कलाओं की स्थिति २०६ है। अजंता की प्राचीन शैली के मुख्यतः, तथा राजपूत-मुगल शैली की कुछ बातों और चीन जापान की अंकन तथा अभिव्यंजन विधि के मेल से यह नवीन शैली निकली है। इसमें एक निजी मौलिकता है। प्रारंभ में, भावों का व्यंजन करना तथा प्राचीन दृश्य श्रादि दिखाना इसकी विशेषता थी; पर अब यह लोक के सामान्य दृश्य तथा प्रकृति के उत्तमोत्तम चित्रों का चित्रण भी करती है। ठाकुर महाशय की शिप्य- मंडली देश में इस समय अच्छा काम कर रही है। • कंपनो के समय में पटने में कई कारीगरों ने पाश्चात्य ढंग से "शवोह" बनाने का अभ्यास किया था। मुगल कला की गिरती अवस्था में इनका अच्छा प्रचार हुआ था और अव भी कलकत्ते के प्रो० ईश्वरीप्रसाद और उनके सुपुत्र नारायणप्रसाद एवं रामेश्वरप्रसाद इस शैली के विश्रुत चित्रकार है। मुगल शैली के दो तीन यचे चित्रकारों में काशी के श्री उस्ताद रामप्रसाद का श्रासन यहुत उँचा है। संगीत कला ___संगीत का श्राधार नाद है जिसे या तो मनुप्य अपने कंठ से या कई प्रकार के यंत्रों द्वारा उत्पन्न करता है। इस नाद का नियमन कुछ . निश्चित सिद्धांतों के अनुसार किया गया है। इन सिद्धांतों के स्थिरीकरण में हिंदू समाज को अनंत समय लगा है। वेद के तीन स्वरों से बढ़ते पढ़ते संगीत के सप्त स्वर इन सिद्धांतों के श्राधार हुए। ये ही सप्त स्वर संगीत कला के प्राणरूप या मूल कारण हैं। संगीत कला का आधार या संवाहन नाद है। इसी नाद से हम अपने मानसिक भावों को प्रकट करते हैं। संगीत की विशेषता इस बात में है कि उसका प्रभाव पड़ा व्यापक है और वह अनादि काल से मनुष्य मात्र पर पड़ता चला आ रहा है। जंगली से लेकर सभ्यातिसभ्य मनुष्य तक उसके प्रभाव से वशीभूत हो सकते हैं। मनुष्यों को जाने दीजिए, पशु-पक्षी तक उसका अनुशासन मानते हैं। संगीत हमें रुला सकता है, हसा सकता है, हमारे हृदय में श्रानंद की हिलोरें उत्पन्न कर सकता है, हमें शोकसागर में डुवा सकता है, क्रोध या उद्वेग के वशीभूत करके उन्मत्त बना सकता है और शांत रस का प्रवाह यहाकर हमारे हृदय को स्वच्छ और निर्मल कर सकता है। परंतु जैसे अन्य कलाओं के प्रभाव की सीमा है, वैसे ही संगीत की भी सीमा है। संगीत द्वारा भिन्न भिन्न भावों या दृश्यों का अनुभव कानों के द्वारा मन को कराया जा सकता