पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२१४

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२११ ललित कलाओं की स्थिति की कविताएँ सतुकांत होती थीं। जान पड़ता है कि सतुकांत कविता की सृष्टि संगीत के ही कारण हुई होगी। श्राज भी गायक समुदाय ऐसे भजनों का व्यवहार कम करते हैं जिनमें तुकों का जोड़ बदला रहता है। शाङ्गदेव के उपरांत इस देश में, विदेशीय रागों के सम्मिश्रण से उस संगीत का जन्म हुआ जिसे हम हिंदुस्तानी संगीत कहते हैं। लोकोत्तर प्रतिभाशाली, अद्भुत मर्मज्ञ और सहृदय अमीर खुसरो को इस नवीन परंपरा के सृजन का श्रेय प्राप्त है। उसने अपनी विलक्षण बुद्धि द्वारा भारतीय रागों को फारस के रागों से मिलाकर १५-२० नए रागों की कल्पना की, जिनमें से ५-६ श्राज भी हिंदुस्तानी संगीत में प्रचलित हैं। ईमन और शहाना श्रादि ऐसे ही राग हैं। ख्याल परि- पाटी का गाना उन्हीं ने निकाला था। जौनपुर की पठान सल्तनत ने भी संगीत की विशेष उन्नति की थी। हुसेनशाह शर्की स्वयं बहुत बड़े गायक थे। उन्होंने कई रागों की परिकल्पना की थी और एक दूसरी परिपाटी के ख्याल का गाना चलाया था। इन्हीं दिनों मेवाड़ के राणा कुंभा ने संस्कृत के गीतगोविंद पर एक टीका लिखी थी और संगीत कला पर अच्छा प्रकाश डाला था। इस काल में संगीत के अनेक ग्रंथ लिखे गए जिससे सिद्ध होता है कि संगीत की इस समय अच्छी उन्नति हुई थी। इस काल में अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में गोपाल नायक. नामक संगीत के अच्छे आचार्य हुए। अलाउद्दीन यधपि अत्याचारी का था, परंतु गुणियों का ग्राहक भी था। गोपाल " को वह दक्षिण से लाया था, जिसकी रचनाएँ श्रव , तक मिलती है, किंतु उनमें बहुत सा प्रक्षिप्त अंश अब मिल गया है। संगीत के प्रसिद्ध प्राचार्य और गायक बैजू बावरा का समय सोलहवीं शताब्दी का प्रारंभिक भाग है। वे गुजरात में उत्पन्न हुए थे और ग्यालियर के राजा मान तोमर के यहां उन्होंने शिक्षा पाई थी। ये महाराज स्वयं संगीत में पारंगत थे और ध्रुपद प्रणाली के परिप्कारक, उन्नायक तथा प्रचारक थे। ध्रुपद संस्कृत छंद पर अवलंबित है और ध्रुवा नामक गीत से इसका घनिष्ठ संबंध है। मान तोमर के समय से लेकर मुहम्मदशाह रँगीले के समय तक इस प्रणाली का एकच्छत्र राज्य रहा। अव भी यह प्रणाली सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, यद्यपि लोकरुचि इस समय इसकी ओर नहीं है। यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक होगा कि संगीत की यह पद्धति कलावंतों की पद्धति है, जिसे अाजकल पका गाना कहते हैं। इसके अतिरिक्त गाने की दो शैलियाँ और भी