पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२१९

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२१६ हिंदी साहित्य शैलियों में भी देख पड़ती है। चित्रकला भी बहुत दिनों तक पिछड़ी न रह सकी। शीघ्र ही उस राजपूतशैली का बीजारोपण हुश्रा जो आगे चलकर भारत की, अपने ढंग की, अनोखी अंकन प्रणाली सिद्ध हुई। हिंदू मंदिरों में भी मुसलिम प्रभाव पड़े। मानसिंह के निर्मित भवनों में मुसलिम-निर्माण विधि का बहुत अधिक अनुकरण था। राजपूताने की भवन निर्माण शैली पर मुसलिम कला की छाप अमिट है। विकास के उपरांत हास और हास के उपरांत विकास का क्रम सर्वत्र देखा जाता है। सूर और तुलसी के पीछे देव और बिहारी का युग पाया। विलासिता और शृंगारिकता का प्रवाह प्रवल पड़ा। साहित्य फुत्सित वासनाओं के प्रदर्शन का साधन बन गया। उसका उच्च लक्ष्य भुला दिया गया। यह शाहजहाँ और औरंगजेब का काल था। इस काल का प्रसिद्ध "ताजमहल" वास्तुकला के चरम उत्कर्ष का श्रादर्श माना जा सकता है। परंतु उसी समय अवनति का भी प्रारंभ हुश्रा। औरंगजेव धार्मिक नृशंसता का प्रतिनिधि श्रीर फलानों का संहा- रक था। सुंदर हिंदु-मंदिरों को भंग कर जो उजाड़ मस्जिदें उसने धन- चाई उनसे उसकी हृदयहीनता का पता लग जाता है। उसने मुसलिम धर्म के श्राक्षानुसार नाच गान श्रादि बंद करा दिया था, जिससे संगीत. कला को बड़ी क्षति पहुँची। मूर्तियों और चित्रों का भी ह्रास ही हुआ। ___ इस पतनकाल में महाराष्ट्र शक्ति का अभ्युदय हुआ था जिससे साहित्य की भंगारधारा में भूपण की ओजस्विनी रचनाएँ देख पड़ी। मराठों में उत्कट कला-प्रेम का चीज था, परंतु चे सुख-शांति-पूर्वक नहीं रहे, निरंतर युद्ध में ही व्यस्त रहे। फिर भी उन्होंने संगीत- कला की थोड़ी बहुत उन्नति की, और काशी के मंदिरों और घाटों के रूप में अपनी वास्तु-कला-दक्षता का परिचय दिया। इसके कुछ समय पीछे सिख शक्ति का अभ्युत्थान हुआ पर इसी बीच में अँगरेजों के श्रा जाने और राज्यस्थापन में प्रवृत्त होने से जो अशांति फैली, उसके कारण कलाओं की उन्नति रुक गई। अाधुनिक काल में यद्यपि साहित्य की अनेकमुखी धाराय वह निकली है, पर अब तक इनमें गहराई नहीं आई है। पश्चिमीय श्रादर्शी की छाप और नकल अधिक देख पड़ने लगी है। आशा है कि शीघ्र ही हम नकल का पीछा छोड़ साहित्य में ही नहीं प्रत्युत प्रत्येक ललित कला में अपने श्रादर्शों की रक्षा करते हुए स्वतंत्र रूप से उन्नति करेंगे।