पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२२

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दूसरा अध्याय

भारतवर्ष की आधुनिक भाषाएँ

जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, आधुनिक भारतीय भाषाओं के विवेचन से सिद्ध होता है कि कुछ भाषाएँ तो पूर्वागत श्रार्यों की भापायों अरश और बर से संबंध रखती हैं, जो इस समय भी मध्य देश रग भाषाएँ " के चारों ओर फैली हुई हैं, और कुछ परागत पार्यो की भाषाओं से संबद्ध हैं। इस प्राधार पर हार्नले और ग्रियर्सन ने भारत की आधुनिक भापान के दो मुख्य विभाग किए हैं। उनमें से एक विभाग की भापाएँ तो उन प्रदेशों में बोली जाती हैं जो इस मध्य देश के अंतर्गत है; और दूसरे विभाग की भाषाएँ उन प्रदेशों के चारों ओर के देशों में अर्थात् कश्मीर, पश्चिमी पंजाब, सिंध, महाराष्ट्र, मध्य भारत, उड़ीसा, विहार, वंगाल तथा श्रासाम में वोली जाती हैं। एक गुजरात प्रदेश ही ऐसा है, जिसमें बोली जानेवाली भापा का संबंध बहिरंग भापायों से नहीं, वरन् अंतरंग भापात्रओं से है। और इसका कारण कदाचित् यही है कि किसी समय इस गुजरात प्रदेश पर मथुरावालों ने विजय प्राप्त की थी और मथुरा नगरी उसी मध्य देश के अंतर्गत है।

इन अंतरंग और बहिरंग भाषाओं में कई ऐसे प्रत्यक्ष अंतर और विरोध हैं, जिनसे इन दोनों का पार्थस्य सप्ट प्रकट होता है। पहले तो दोनों के उच्चारण में एक विशेष अंतर है। अंतरंग भापायों में बहुधा "स" का ठीक उच्चारण होता है; पर वहिरंग भापायों के भापी शुद्ध दंत्य दोनो भाषामों में भेट "स" का उतना स्पष्ट उच्चारण नहीं कर सकते । वे उसका उच्चारण कुछ कुछ तालव्य "श" अथवा मूर्धन्य "प" के समान करते हैं। ईरानी शाखा की फारसी आदि भापायों में बहुत प्राचीन काल से "स' के स्थान में "ह" कर देने की प्रवृत्ति देखने में श्राती है; जैसे, सप्त के स्थान में हप्त। यही बात यहिरंग भाषाओं में भी पाई जाती है। पंजावी और सिंधी में "कोस" का "कोह" हो जाता है। इधर घुगला तथा मराठी में दंत्य "स" के स्थान में प्रायः "श" बोला जाता है। पूर्वी बंगाल तथा श्रासाम में वही "च" और "स" के बीच का एक नया उच्चारण हो जाता है और पश्चिमी