पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२२८

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वीरगाथा काल २२५ को श्रायोजना की गई है और वीरों के प्रामोदकाल में भंगार-मूर्तिमती रमणियों का उपयोग किया गया है। कभी कभी तो पारस्परिक विद्वेष को वृद्धि तथा तत्संभव युद्ध के कारण-स्वरूप राजकुमारियों के स्वयंवर कराए गए हैं, और इस प्रकार वीरता के प्रदर्शन के अवसर निकाले गए हैं। सारांश यह कि यहां की वीर गाथाओं में श्रृंगार कभी कभी वीरता का सहकारी और कभी कभी उसका उत्पादक बनकर पाया है और घरावर गौण स्थान का अधिकारी रहा है। अन्य देशों के ऐसे काव्यों में यह बात नहीं है। उदाहरणार्थ अँगरेज कवि स्काट के रोमेंस-काव्यों को लें। उनमें तो प्रेम की ही प्रधानता और वीरता की अपेक्षाकृत न्यूनता है। जहाँ कहीं प्रेम के कर्तव्य पक्ष के प्रदर्शन की आवश्यकता समझी जाती है, अथवा जहाँ स्त्रीजाति के प्रति सदाचार तथा शील आदि का अभिव्यंजन करना पड़ता है, वहीं वीर भावों की उद्भावना की जाती है। हिंदी के वीर काव्यों तथा अन्य देशों के वीर काव्यों के इसी अंतर के कारण दोनों का रूप एक दूसरे से इतना विभिन्न हो गया है कि समता का पता नहीं चलता। प्रेम- प्रधान होने के कारण ऐसे काव्यों की रंगशाला प्रकृति की रम्य गोद में होती है, जहाँ नायक नायिका के स्वच्छंदतापूर्वक विचरण तथा पारस्प- रिक साक्षात्कार के लिये सब प्रकार के सुभोते रहते हैं। इसके विपरीत हिंदी के पीर काव्यों में मानों उनके सच्चे स्वरूप के प्रदर्शनार्थ ही रण- भूमि को प्रधानता दी गई है और कुमारियों के स्वयंवर-स्थान तक को कमी फभो रक्तरंजित कर दिया गया है। प्रेमप्रधान हृदयों में प्रकृति के नाना रूपों के साथ जो अनुराग होता है, वह युयुत्सु चोरों में नहीं होता। इसी लिये यहाँ की चीर गाथाओं में प्राकृतिक वर्णनों का प्रायः सर्वत्र प्रभाव ही पाया जाता है। यह विशालकाय ग्रंथ हिंदी का प्रथम महाकाव्य समझा जाता है और इसके रचयिता चंद घरदाई पृथ्वीराज के.समकालीन बतलाए जाते हैं, परंतु अपने वर्तमान रूप में यह किसी एक काल की अथवा किसी एक कवि की कृति नहीं जान पड़ता। इसमें पाए हुए संवतों तथा घटनाओं के आधार पर, साथ ही अनेक याद्य साक्ष्यों की सहायता से, इस ग्रंथ के रचनाकाल का निर्णय करने में रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद श्रोमा, पंडित मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री श्रादि प्रसिद्ध विद्वानों ने बहुत कुछ अनुसंधान किया है; परंतु उनकी परस्पर विभिन्न तथा विपरीत सम्मतियों को देखते हुए ठीक ठीक कुछ भी निर्णय नहीं हो सकता। फिर भी इसमें संदेह २६