पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२२९

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२२६ हिंदी साहित्य नहीं कि इसमें बहुत प्राचीन काल से लेकर प्रायः आधुनिक काल तक की हिंदी में बने हुए छंद मिलते हैं, जिससे सिद्ध होता है कि इसमें क्षेपक बहुत हैं। चंद वरदाई नाम के किसी कवि का पृथ्वीराज के दरवार में होना निश्चित है, और यह भी सत्य है कि उसने अपने श्राश्रयदाता की गाथा विविध छंदों में लिखी थी; परंतु समयानुसार उस गाथा की भाषा तथा उसके पर्णित विपयों में बहुत कुछ हेर फेर होते रहे और इस कारण अब उसके प्रारंभिक रूप का पता लगानो असंभव नहीं तो अत्यंत कठिन अवश्य हो गया है। यावू रामनारायण दूगड़ अपने "पृथ्वीराजचरित्र" की भूमिका (पृष्ठ ८६) में लिखते हैं-"उदयपुर राज्य के विक्टोरिया हाल के पुस्तकालय में रासो की जिस पुस्तक से मैंने यह सारांश लिया है उसके अंत में यह लिखा है कि चंद के छंद जगह जगह पर विखरे हुए थे जिनको महाराणा अमरसिंहजी ने एकत्रित कराया।" इस प्रति के अंत में यह छंद है- गुन मनियन रस पोइ चंद कवियन कर दिद्धिय । छंद गुनी ते तुहि मंद कवि भिन भिन किद्धिय । देस देस बिष्परिय मेल गुन पार न पावय। उद्दिम करि मेलवत श्रास बिन आलय नावय (1) ॥ चित्रकोट रान अमरेस नप हित श्रीमुख प्रायस दयो । गुन बिन बीन करुणा उदधि लिपि रासौ उद्दिम कियो । इससे स्पष्ट है कि किसी कवि ने राणा अमरसिंह के समय में उनकी श्राशा से कवि चंद के छंदों को, जो देश देश में विखरे हुए थे,पिरोकर इस रासो को पूर्ण किया। पर यह प्रति संवत् १९१७ की लिखी हुई है । अत- एव यह प्राचीन प्रति नहीं है। संभव है कि राणा श्रमरसिंह के समय में जिस रासोका संग्रह, संकलन या संपादन किया गया हो उसी की यह नकल हो। जो कुछ हो, मेवाड़ राजवंश में श्रमरसिंह नाम के दो महाराणा हुए हैं। पहले का जन्म चैत्र सुदी ७ संवत् १६१६, राज्यप्राप्ति माघ सुदी ११ सं० १६५३ और स्वर्गारोहण माघ सुदी २ स. १६७६ को हुआ । दूसरे महाराणा अमरसिंह का जन्म मार्गशीर्ष वदी ५ सं० १७२६, राज्य- प्राप्ति आश्विन सुदी ४ सं० १७५५ और स्वर्गारोहण पोप सुदी १ सं० १७६७ को हुश्रा। संवत् १७३२ में महाराणा राजसिंह ने राजसमुद्र तालाब के नौचौकी बांध पर बड़ी बड़ी शिलाओं पर एक महाकाव्य खुदवाया। इसमें पहले पहल रासो का उल्लेख मिलता है।। ।