पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२३३

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२३० हिंदी साहित्य ही उपयोगिता अधिक होती है। इसके अतिरिक्त राजसभायों में वीर नुपतियों अथवा सरदारों का गुणगान होता होगा, तब वीर गीतों के ही पाश्रय लेने की आवश्यकता रहती होगी। इसके अतिरिक्त प्रायः पहले गीतों की ही रचना होती है और तव प्रबंध काव्यों की। यद्यपि इस युग में वीर गीतों की रचना अधिकता से हुई होगी, परंतु इस समय तो ये बहुत थोड़ी संख्या में मिलते हैं और अब तो उनके प्रारंभिक स्वरूपों में भी बहुत कुछ हेर-फेर हो गया है। बात यह हुई कि वे रचनाएँ बहुत काल तक लिपिवद्ध नहीं हुई, वे भट्ट चारणों में बहुत कुछ मौखिक रूप में ही बनी रही। इसी कारण उनमें से बहुत सी तो कालकवलित हो गई और बहुतों की भापा श्रादि में परिवर्तन हो गए। कुछ रचनाओं में तो विभिन्न कालों की घटनाओं के ऐसे असंबद्ध वर्णन घुस गए हैं कि वे अनेक कालों में अनेक कवियों की की हुई जान पड़ने लगी हैं। अपने वर्तमान रूप में न तो वर्णित विपयों के आधार पर और न भाषा-विकास के आधार पर ही उनके रचनाकाल का ठीक ठीक निर्णय हो सकता है। नरपति नाल्ह रचित वीसलदेवरासो तथा जगनिक-कृत बारहखंड के पीर गीतों की यहुत कुछ ऐसी ही अवस्था है। इतना सब कुछ होते हुए भी भावों के सरल अकृत्रिम उद्वेग तथा भाषा के स्वच्छंद प्रवाह के कारण तत्कालीन वीर गीतों में एक श्रदभुत श्रोज तथा तीव्रता सी श्रा गई है। न तो इन चीर गीतों में दार्शनिक तत्वों का समावेश ही है और न इनमें प्राकृतिक दृश्यों का ही मनोरम चित्रण है। इनके कथानकों में भी अनेकरूपता तथा विचित्रता नहीं है और न इनकी भाषा में ही किसी प्रकार का यनाव सिंगार है। इनके छंदों में एक मुक्त प्रवाह मिलता है, वे तुकांत आदि के बंधनों से जकड़े हुए नहीं है। प्रायः किसी वीर को वाह्य श्राडंवर पसंद नहीं होते और उसके प्राचार विचार में एक प्रकार की सरलता तथा स्वच्छंदता होती है, साथ ही वह गंभीर तत्वों के समझने में असमर्थ तथा वीर कृत्य करने में तत्पर रहता है। लगभग ऐसी हो अवस्था हमारे उस युग के वीर गीतों की थी। जहाँ हम पृथ्वीराज. रासो श्रादि प्रबंध काव्यों में अनेक क्षत्रिय वंशों की उत्पत्ति के विस्तृत किंतु नीरस वर्णन पाते हैं, और जहाँ भाषा को अलंकृत करने तथा छंदों में तुक आदि पर विशेष ध्यान देने के प्रयास का भी उनमें अनुभव करते हैं, वहाँ वीसलदेवरासो तथा पाल्हा प्रादि वीर गीतों में कहीं भी शिथिलता नहीं पाते और न बंधनों की जटिलता का ही उनमें कहीं पता चलता है। कथानकों को सजाने तथा उनमें नवीनता लाने का जितना