पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२३६

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घोरगाथा काल , २३३ 'इस चीर गीत में न तो पृथ्वीराज के चरित की प्रधानता और न उसकी वीर कृतियों की प्रशंसा है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह ग्रंथ प्राचीन रूप में जगनिक का लिखा हुअा था जो महोवे के चंदेल शासक परमाल के दरबार में रहता था। यह चंदेल शासक पृथ्वीराज का सम- कालीन और कन्नौज के अधिपति जयचंद का मित्र तथा सामंत था। इस पुस्तक में प्रधानतः पाल्हा और ऊदल (उदयसिंह) नामक धीर क्षत्रियों तथा साधारणतः उनके अनेक भाइयों और कुटुवियों की धीर गाथाएँ हैं। आल्हा और ऊदल बनाफर शाखा के क्षत्रियों के वंशज थे और महोवे के तत्कालीन चंदेल अधिपति परमाल के सामंतों तथा सेनापतियों में थे। यद्यपि परमाल अशक्त तथा भीरु शासक था परंतु उसकी स्त्री मल्हना अपने वीर सामंतों की सहायता से कई बार पृथ्वीराज तक के आक्रमणों को विफल करने में समर्थ हुई थी। पाल्हा, ऊदल, लाखन, सुलखे आदि वीर भ्राताओं की धाक तत्कालीन छोटे छोटे राज्यों पर तो थी ही, कन्नौज जैसे विस्तृत साम्राज्य का अधिपति जयचंद भी उनकी वीरता के आगे सिर झुकाता था । पाल्हखंड के चीर गीतों में इन्हीं वीर भ्राताओं के अनेक विवाहों तथा प्रायः पावन लड़ाइयों का वर्णन है। उस समय की कुछ ऐसी स्थिति हो गई थी कि प्रत्येक विवाह में वीर क्षत्रियों के लिये अपनी वीरता का प्रदर्शन करना श्रावश्यक होता था और कन्यापक्ष वालों को पराजित करने पर ही उन्हें कन्या से विवाह करने का अधिकार मिलता था। यद्यपि इस पुस्तक में युद्धों का जितना विशाल रूप प्रदर्शित किया गया है, उसमें बहुत कुछ. 'अतिशयोक्ति भी है; परंतु यह निश्चित है कि महोवे के इन वीर सरदारों ने सफलतापूर्वक अनेक युद्ध किए थे और उनमें विजयी होकर उन्होंने राजकन्याओं का अपहरण भी किया था। पुस्तक के अंत में अत्यंत फरलाजनक दृश्य उपस्थित होता है। सब चीर बनाफर युद्ध में मारे जाते हैं, उनकी रानियाँ सती होने के लिये अग्नि की शरण लेती हैं और बचे हुए केवल दो व्यक्ति, आल्हा और उसका पुत्र इंदल, गृह परि- त्याग कर, किसी कजरीवन में जा बसते हैं। इस कजरीवन का ठीक ठीक पता अभी तक नहीं लग सका है। यह कोई कविकल्पित स्थान जान पड़ता है जिससे निर्जनता तथा अंधकार की व्यंजना होती है। . इस वीर गीत में अनेक युद्धों का वर्णन बहुत कुछ एक ही प्रकार से हुआ है, साथ ही इसमें अनेक भौगोलिक अशुद्धियाँ भी पाई जाती हैं, परंतु साधारण पाठकों के लिये इसके वर्णनों में बड़ा आकर्षण है। यद्यपि इसमें साहित्यिक गुणों को बहुत कुछ न्यूनता पाई जाती है, पर