पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२३८

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वीरगाथा काल . २३७ वीरगाथा काल के अंतिम अंश में हमें हिंदी गद्य के श्राविर्भाव की भी झलक मिलती है। यद्यपि निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सामान सकता कि हिंदी में गद्य-रचना का प्रारंभ कव से हुअा, पर जितनी छानबीन अब तक हुई है, उससे (हिंदी गद्य का सबसे प्राचीन नमूना गोरखनाथजी के ग्रंथों में मिलता है । गोरखनाथजी का आविर्भाव विक्रम की १४वीं शताब्दी के अंत में हुआ था।) अव तक उनके जितने ग्रंथों का पता लगा है, उनमें से एक में भी निर्माणकाल नहीं दिया है, किसी किसी में लिपि-काल दिया है, पर वह है संवत् १८५५ और १८५६। इनमें से एक ग्रंथ गध में भी है। यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि इस ग्रंथ की रचना कब हुई, परंतु भाषा में प्राचीनत्व के चिह्न अवश्य वर्तमान हैं। इससे यह अनु- मान किया जा सकता है कि यह ग्रंथ प्राचीन होगा। पृथ्वीराज के समय के कुछ पट्टे और पत्र भी राजपूतानी गद्य में लिखे हुए मिले हैं, पर अनेक विद्वानों का कहना है कि ये प्रामाणिक नहीं हैं। इस संदिग्ध अवस्था में यह कहना कठिन है कि हिंदी के गद्य का आविर्भावाकव हुआ। उस काल के साहित्य का साधारण दिग्दर्शन कर लेने पर स्वभा- यतः यह इच्छा होती है कि हम उस युग के भाषा संबंधी विकास का प्रगति भी निरीक्षण करें और धीरगाथाओं में प्रयुक्त छंदों श्रादि से भी परिचित हों। साहित्य के भावपक्ष के साथ ही साथ उसका फलापक्ष भी विकसित होता चलता है, और दोनों का संबंध बहुत कुछ घनिष्ठ हुश्रा करता है। अतएव साहित्य का इतिहास जानने में भाषा के क्रमिक विकास का रूप जानना भी सहायक और उपयोगी ही नहीं होता, वरन् बहुत कुछ अनिवार्य भी होता है। यह पहले ही कहा जा चुका है कि हिंदी की उत्पत्ति प्राकृत काल की अपभ्रंश भाषाओं से हुई है। परंतु अपभ्रंश कहाँ समाप्त होती है और पुरानी हिंदी कहाँ प्रारंभ होती है इसका ठीक ठोक पता लगाना बहुत कठिन है। श्रय तक अपभ्रंश भाषाओं का जितना साहित्य उपलब्ध हुआ है, उसके आधार पर तो केवल यह कहा जा सकता है कि अपभ्रंश के पिछले स्वरूप में और हिंदी के प्रारंभिक स्वरूप में बहुत अधिक एकरूपता है, और इन दोनों भाषाओं में इतना कम अंतर है कि उनके बीच में समय-भेद अथवा देश-भेद बतलानेवाली कोई रेखा नहीं खींची जा सकती। कुछ उदाहरण ऐसे हैं जिन्हें अपभ्रंश भी कह सकते हैं और पुरानी हिंदी भी। अपभ्रंश के उत्तर काल में भी देश की प्रायः वैसे ही स्थिति थी, जैसी हिंदी के आदि काल में थी, अतः