पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२४४

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घोरगाथा कॉल २४३ काव्य बनाए होंगे, जो या तो श्रव कालकवलित हो गए या रजवाड़ों के पुस्तकालयों के किसी कोने में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हुए होंगे। ऐसे कान्यों को न तो हम धीरगाथात्मक काव्य कह सकते हैं और न उनके रचयिताओं को वीरगाथाकार कह सकते हैं। ऐसे कवियों की रचनाओं में और सच्चे वीर कविताकारों में स्पष्ट भेद दिखाई पड़ता है। सच्चे वीरों की प्रशस्ति लिखनेवाले कपि सत्य का प्राश्रय लेते हैं, अतः उनकी रचनाएँ चिरकाल तक जनता की कंठहार बनी रहती हैं। उनमें समस्त जाति और समस्त देश का गौरव अंतर्निहित रहता है। उनका सार्वदेशिक प्रचार होता है और उनके निर्माता कवि यशस्वी तथा अमर हो जाते हैं। इसके विपरीत स्वार्थलोलुप खुशामदी कवियों की कृतियों में शब्द-चातुर्य की सहायता से युछ काव्यगुण भले ही श्रा जाये, पर उनका बहुत शीघ्र लोप हो जाता है। मिथ्या स्तुति पर अवलंचित होने के कारण थोड़े ही दिनों में बेरचनाएँ याल्मारियों से बाहर निकलने के योग्य नहीं रह जाती क्योंकि मानव-प्रकृति सत्यं को ग्रहण करती और असत्य से घृणा करती है। महाराणा प्रतापसिंह जैसे सच्चे वीर का सम्मान उस समय देश न कर सका, उनकी एक भी उल्लेखनीय गाथा नहीं लिसी गई, एक थही यात पुकार पुकारकर कह रही है कि वह समय वीरगाथाओं का नहीं था, वह समय जाति के पतन का और सुशामदी कवियों की वासना-तृप्ति का था। मुगल दरवारों में अनेक हिंदू कवि रहते थे और अपने श्राश्रयदाताओं की स्तुति करने में ही अपने जीवन की सार्थकता समझते थे। जातीय जीवन की पूर्ण विस्मृति का यह एक श्रेष्ठ उदाहरण है। यह स्थिति औरंगजेय के समय तक रही। उसके उपरांत हवा यदली। औरंगजेब की प्रशंसा करनेवाले किसी प्रसिद्ध हिंदू कवि का पता श्राज नहीं लगता, यद्यपि कुछ कवि उसके दरवार में रहते अवश्य थे। इसका कारण यही है कि हिंदुत्रों में राष्ट्रीय चेतना का प्रादुर्भाव हो रहा था और मुगल शासन की श्रोर से धीरे धीरे श्राकर्षण हटता जा रहा था, चकाचौंध दूर हो रही थी और दृष्टि के धागे से मोह तथा अशान का परदा धीरे धीरे उठ रहा था। जब हम द्वितीय उत्थानकाल की वीर गाथायों की तुलना आदि युग की वीर रचनाओं से करते हैं, तब उनमें कुछ बातों में समता और कुछ में विभेद दिखाई पड़ता है। इस समता और विभेद पर ध्यान देना अत्यावश्यक है; क्योंकि समता में तो हम वीरगाथाओं की सामान्य प्रवृत्ति देखते हैं और विभेद में विभिन्न कालों की परिस्थिति का विवरण पाते हैं। दोनों कालों की वीरगाथाएँ अद्भुत शोज से भरी हुई है।