पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिंदी भाषा (यहाँ में, मी, मैं, मैं सभी 'मया' से निकले हुए करण विभक्त्यंत रूप है। 'मैंने' में करण की दोहरी विभक्ति लगी है)। पूर्वी भापार ( कर्तरि प्रयोग) पूर्वी हिंदी-मैं पाथी पढ़े। भोजपुरिया-हम पाथी पढ़ली। मैथिली-हम पाथी पढ़लहुँ। बगला-ग्रामि पुथी पोडिलाम् । (मुइ पुथी पोडिली-लुम् ) उडिया--श्राम्मे पोथि पोलिँ (मैं पोथि पोढिली) विचार करने की बात है कि इस प्रकार भेद रहते हुए बँगला श्रादि पूर्वी भाषाओं को सिंधी, पश्चिमी पंजावी श्रादि के साथ नाथकर सयको पहिरंग मान लेना कहाँ तक ठीक है। एवं अंतरंग और बहिरंग भेद का प्रयोजक पार्यों का भारतवर्ष में अनुमित पूर्वागमन और परा- गमन भी संदिग्ध नहीं माना जा सकता, क्योंकि इसके विरुद्ध धायों का पहले ही से सप्तसिंधु में निवास करना एक प्रकार से प्रमाणित हो चला है। अस्तु; यह विषय अभी बहुत कुछ विवादग्रस्त है। कोई पक्ष अभी तक सर्वमान्य नहीं हुआ है। इस अवस्था में धाधुनिक आर्यभाषाओं के अंतरंग और यहिरंग विभेदों को ही मानकर हम आगे बढ़ते हैं। अंतरंग भाषाओं के दो मुख्य विभाग हैं-एक पश्चिमी और दूसरा उत्तरी। पश्चिमी विभाग में पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती और भाषाओं का वर्णाकरण पंजाबी ये चार भाषाएँ है; और उत्तरी विभाग में

  • पश्चिमी पहाड़ी, मध्य पहाड़ी और पूर्वी पहाड़ी ये

तीन मापाएँ हैं। यहिरंग भाषाओं के तीन मुख्य विभाग हैं-उत्तर- पश्चिमी, दक्षिणी और पूर्वी। इनमें से उत्तर-पश्चिमी विभाग में कश्मीरी, फोहिस्तानी, पश्चिमी पंजाबी और सिंधी ये चार भाषाएँ है। दक्षिणी विभाग में केवल एक मराठी भाषा है; और पूर्वी विभाग में उड़िया, विहारी, बँगला और श्रासामी ये चार भाषाएँ हैं। जैसा कि हम ऊपर कह पाए हैं, इन अंतरंग और बहिरंग भाषाओं के बीच में एक और विभाग है, जो मध्यवती कहलाता है और जिसमें पूर्वी हिंदी है। इस मध्यवर्ती विभाग में अंतरंग भाषाओं की भी कुछ पाते हैं और बहिरंग भाषाओं की .. भी कुछ याते हैं। यहां हम इनमें से केवल पश्चिमी हिंदी, विहारी और पूर्वी हिंदी के संबंध की कुछ मुख्य मुख्य वाते दे देना चाहते हैं।