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२५० हिंदी साहित्य करते भी थे। फलतः उनके देशनिवासियों ने उनकी कृतियों का सम्मान धार्मिक पुस्तकों का सा किया और वे स्वयं सबकी दृष्टि में . पूजनीय हुए। हमको इस समय ऐसे ही कवियों की आवश्यकता है। हिंदी में अभी ऐसे कवि नहीं हैं। चीर-कविताकारों में उल्लेख योग्य नाम माखनलालजी चतुर्वेदी, पालकृष्णजी शर्मा, गयाप्रसादजी शुक्ल, अनूप, वियोगी हरि, माधव शुक्ल प्रादि के हैं। लाला भगवानदीन का वीर-पंचरत्न और वियोगी हरि की वीर-सतसई इस प्रकार के काव्यों की अर्वाचीनतम उत्तम कविताएँ हैं। इस प्रकार की आधुनिक रचनाओं 'का थोड़ा-बहुत प्रभाव राष्ट्रीय जीवन पर पड़ा है, पर अभी इस क्षेत्र में विशेष उन्नति की श्रावश्यकता है।