पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२५३

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हिंदी साहित्य की नजर में सिद्ध बनने के लिये योग की साधारण सी प्रक्रियाओं का ही जान लेना काफी था। यह धर्म वज्रयान कहलाया। इस वज्रयानी 'सिद्धई' से जनता का उद्धार करना भारतीय आध्यात्मिक जीवन की सवसे यड़ी प्रायश्यकता थी। जान पड़ता है कि वज्रयान की प्रतिक्रिया स्वरूप एक ऐसे अांदो- योगमाग लन ने जन्म लिया जिसने योग-सिद्धि के लिये स्त्री को श्रावश्यक उपादान नहीं प्रत्युत परीक्षा का साधन बतलाया। मलंदरनाथ योग की क्रियाओं में निपुणता प्राप्त कर अपनी 'सिद्धि' को पूर्णता के प्रदर्शन के उद्देश से सिंहल की एमिनी स्त्रियों के यीच गए पर पूरे न उतरे। अपने गुरु की शिक्षा का पूर्ण प्रदर्शन गोरखनाथ के द्वारा संभव हुमा । गोरखनाथ ही ने भोगलिप्सा में पड़े हुए अपने गुरु को इस मायिक निद्रा से उठाकर अपनी योगशक्ति को उयुद्ध किया। "जाग मछंदर गोरख पाया" एक बहुत प्रसिद्ध उक्ति है जो इसी घटना की ओर संकेत करती है। कैवल्य की प्राप्ति के उद्देश से साधना करनेवालों के लिये गोरस ने ऐसी जीवन-शैली का उपदेश दिया जिसमें योग फी नेती, धोती, श्रासन, बंध, मुद्रा इत्यादि के साथ साथ विंदु-धारण का विशेष महत्त्व था। सामान्य जीवन-व्यवहार तथा रहन-सहन के लिये भी उन्होंने अपने अनुयायियों के लिये जो नियम बनाए उनमें विनम्रता और सौम्य तथा निष्काम भाव का विशेष महत्त्व रहता था । युकायुक्त विहार का गोरख- नाथ को अत्यधिक ध्यान था। अध्यात्म-जगत् में असंयम और दुरा- चार के विरुद्ध उन्होंने जो घोर युद्ध छेड़ा वह उस भयंकर युद्ध से किसी दशा में कम नहीं था जो पश्चिमोत्तर प्रदेशों से बढ़कर आते हुए शत्रु- दलों को रोकने के लिये हिंदू नृपतियों को करना पड़ रहा था। योगियों का यह संप्रदाय, जो महात्मा गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्र- नाथ से प्रारंभ होकर फैला, हठयोगियों का संप्रदाय कहलाता है। यह हठयोग यद्यपि प्राचीन शास्त्रों में प्रतिपादित योग-मार्ग से भिन्न नहीं है और मैलिक रूप से महात्मा पतंजलि के योग-शास्त्र के ही अंतरगत है तथापि एक शाखा के रूप में इसका स्वतंत्र विकास भी सांप्रदायिक तथा ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टियों से स्वीकार किया गया है। इस हठयोग के प्रर्वतकों ने प्रारंभ से ही हिंदी भाषा के तत्कालीन रूप को अपने मार्ग के विकास के लिये प्रयुक्त किया और उनकी परंपरा में भी हिंदी भाषा का त्याग नहीं किया गया। इस कारण हठयोग हिंदी का श्राश्रय लेकर अपनी स्वतंत्र सत्ता और भी अधिक प्रतिष्ठित कर सका।