पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२५४

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२५३ । योग-धारा योग-संबंधी अन्य संप्रदाय संस्कृत, पाली तथा प्राप्त प्रादि भाषाओं का आधार लेकर घढ़े परंतु हठयोग की अभिव्यक्ति हिंदी भाषा द्वारा ही हुई। । यह हठयोग फ्या वस्तु है और अन्य योग सिद्धांतों से किस प्रकार भिन्न है इसका भी संक्षिप्त परिचय पाठकों को प्राप्त कर लेना चाहिए। हठयोग वास्तव में योग संबंधी साधना का एक व्यावहारिक मार्ग है। योग का अर्थ यद्यपि भिन्न भिन्न विद्वान् अपनी अपनी दृष्टि से करते है परंतु प्रायः सभी इस बात में सहमत है कि मनुष्य की सांसा. रिक सत्ता र तत्संबंधीत भाव का खो जाना तथा उसे खोकर परमात्म सत्ता या अद्वैत में युक्त हो जाना ही योग की व्यापक व्याख्या हो सकती है। जब तक मनुष्य संसार के कार्यो में लिप्त होकर जीवन फा उच्च उद्देश नहीं समझता तब तक वह योगी नहीं कहा जा सकता। जब तक उसका मन और इन्द्रियाँ उसके घश में नहीं है तव तक मनुप्य के कार्य योग-सम्मत नहीं हो सकते। इसलिये महात्मा पतंजलि ने अपने सुप्रसिद्ध योगशास्त्र के श्रारंभ में ही योग की व्याख्या करते हुए चित्त-वृत्ति के निरोध अर्थात् मन, बुद्धि अथवा इंद्रियों के संयमपूर्वक साधन को ही योग की संज्ञा दी है। संसार की अनेकमुखी प्रवृत्तियों के अनुसार योग की भी अनेक शाखात्रों का होना स्वाभाविक है परंतु उनके मूल में यह साम्य अथवा लक्ष्य अवश्य रहता है कि मनुष्य सांसारिक विकारों के बंधन से छर कर नियंध हो जाय। जो मनुष्य प्रवृत्ति-प्रधान या कर्मी हैं उनके लिये कर्मयोग की व्यवस्था की गई है। संसार के कार्य करते हुए भी किस प्रकार उनसे अपनी आत्मा को स्वतंत्र रखा जाय और अंत में किस प्रकार कर्म-बंधन से विनिर्मुक्त होकर मनुप्य मोक्ष प्राप्त करे यह इस कर्मयोग में उपदिष्ट है। इसी प्रकार जो भावना-प्रधान व्यक्ति हैं उनके लिये भक्ति-योग की व्यवस्था की गई है। ऐसी ही अनेक योग-शाखाएँ भारतवर्ष में प्रचलित हुई तथा फली-फूली। इन्ही में एक हठयोग की शाखा भी है। यह हठयोग एक प्रकार से योग-संबंधी निवृत्ति-प्रधान या संन्यास मार्ग है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, बौद्ध तांत्रिक मतों की बढ़ती हुई काम-प्रेरणा के विरुद्ध इसका आविर्भाव हुआ। अतः प्रति- क्रिया-स्वरू पइसका निवृत्ति-प्रधान होना स्वाभाविक ही था। यह योग- मार्ग ब्रह्मचर्य या विंदुरक्षा का उत्कट उपदेश देता है और स्त्री-संसर्ग को दूपित ठहराता है। योगको प्रक्रियाओं में हठयोगी जिन यम-नियम, प्राणायाम-प्रत्याहार श्रादि का उपदेश करते हैं उनमें स्त्री-संग त्याग का